- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 442
हाईकू
देवी देवता से,
गुरु होते बढ़ के माँ-पिता से ।।स्थापना।।
करूँ सजल दृग् अर्चन,
सुलझा दो उलझन ।।जलं।।
चचूँ चन्दन चरणन,
सुलझा दो उलझन ।।चन्दनं।।
भिंटाऊँ शाली धान-कण,
सुलझा दो उलझन ।।अक्षतं।।
आया शरण ले सुमन,
सुलझा दो उलझन ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नीके घी-के व्यंजन,
सुलझा दो उलझन ।।नैवेद्यं।।
प्रजालूँ दीप अनगिन,
सुलझा दो उलझन ।।दीपं।।
खेऊँ सुगंध हुताशन,
सुलझा दो उलझन ।।धूपं।।
भेंटूँ पिटार-फल-वन,
सुलझा दो उलझन ।।फलं।।
आये ले आठों ही शगुन,
सुलझा दो उलझन ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
जब से घर न आये,
‘आप’
रोपे पौधे मुर्झाये
जयमाला
रहने भी दो
हैं सब बातें बस तुम्हारी
तुम्हें हैं फिकर ही नहीं हमारी
जि गुरु जी ओ
रहने भी दो
जो होते हम, जरा भी कुछ तुम्हारे
तो रह पाते तुम
आये दिन
क्या आये बिन
घर पर हमारे
तुम्हें कुछ खबर ही नहीं हमारी
तुम्हें है फिकर नहीं हमारी
रहने भी दो
हैं सब बातें बस तुम्हारी
तुम्हें हैं फिकर ही नहीं हमारी
जि गुरु जी ओ
जो होते तुम, जरा भी कुछ हमारे
तो देख पाते तुम
ये नैना
क्या दिन रैना
नम हमारे
तुम्हें कुछ खबर ही नहीं हमारी
तुम्हें है फिकर नहीं हमारी
रहने भी दो
हैं सब बातें बस तुम्हारी
तुम्हें हैं फिकर ही नहीं हमारी
जि गुरु जी ओ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
दे बेहिसाब आना,
पड़े न माँ, श्री गुरु पढ़ाना
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