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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 439

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 439

    =हाईकू=

    दृग् म्हारी अभी भी नम,
    चाँद दूज ! पाया पूनम ।।स्थापना।।

    छू ये दृग्-जल,
    ओ ! वसु माँ सुत,
    दो बना अद्भुत ।।जलं।।

    छू ये संदल,
    ओ ! श्रुत विश्रुत,
    दो बना प्रनुत ।।चन्दनं।।

    छू ये तण्डुल,
    ओ ! बुध-विशुद,
    दो बना बिबुध ।।अक्षतं।।

    छू ये गुल,
    ओ ! दया-क्षमा बुत,
    दो बना अच्युत ।।पुष्पं।।

    छू ये क्षुध्-हर,
    ओ ! सुर-संस्तुत,
    दो बना विशुध ।।नैवेद्यं।।

    छू ये ज्योतर,
    ओ ! दिवि-अच्युत,
    दो बना जागृत ।।दीपं।।

    छू ये अगर
    ओ ! चारित-युत,
    दो बना दृग्-जित ।।धूपं।।

    छू ये फल,
    ओ सहज प्रनुत,
    दो बना अमृत ।।फलं।।

    छू ये सकल,
    ओ ! भावी अर्हत,
    दो बना किस्मत ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=

    लागे गुरु को प्यारी,
    ‘भोले भालों की’ तरफदारी

    जयमाला

    तुझपे जाँ निसार करता हूँ
    मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूँ

    तू है ही कुछ अनोखा
    चुभती ततूरी में
    तपती दुपहरी में
    है ठण्डी हवा का सा झौंका
    तू है ही कुछ अनोखा

    झपाऊँ पलक ‘कि तेरा दीदार करता हूँ
    मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूँ
    तुझपे जाँ निसार करता हूँ
    मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूँ

    तू है ही कुछ जुदा सा
    रास्ता दिखाने में
    आसमाँ छुवाने में
    है बहुत कुछ तू खुदा सा
    तू है ही कुछ जुदा सा
    याद तुझे दिन में सौ बार करता हूँ
    मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूँ
    तुझपे जाँ निसार करता हूँ
    मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूँ
    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    ==हाईकू==

    छोड़ के चले ना जाना मुझे,
    दिलो-जाँ माना तुझे

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