परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 427हाईकू
न तुम भले हमें,
‘चाहते’ हम अकेले तुम्हें ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ए ! गुरु परम,
मेंटो जरा जनम ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन, ए ! गुरु परम,
दृग् दो भेंट नम ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत, ए ! गुरु परम,
लूँ ‘तोर’ भरम ।।अक्षतं।।भेंटूँ पुष्प, ए ! गुरु परम,
रख सकूँ शरम ।।पुष्पं।।भेंटूँ चरु, ए ! गुरु परम,
त्राहि-माम् छुये यम ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीप, ए ! गुरु परम,
राह ले मोह तम ।।दीपं।।भेंटूँ धूप, ए ! गुरु परम,
होऊँ मैं मरहम ।।धूपं।।भेंटूँ फल, ए ! गुरु परम,
शिव न हो अगम ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ्य, ए ! गुरु परम,
गुम कर दो गम ।।अर्घ्यं।।हाईकू
गुरु ले बस अपना,
टोका-टाँकी बिना,
दें बनाजयमाला
ज्यादा और कुछ नहीं चाहता हूँ मैं,
बस जर्रा सा दे दो अपना वक्त हमें,
देखती रहें
‘कि टकटकी लगा के
ये आँखें तुम्हेंहै नहीं पखारे
चरणा तुम्हारे
कब से बेचैन
मेरे ये नैन
दे दो गन्धोदक इन्हें
ज्यादा और कुछ नहीं चाहता हूँ मैं,
बस जर्रा सा दे दो अपना वक्त हमें,
देखती रहें
‘कि टकटकी लगा के
ये आँखें तुम्हें
है नहीं पखारे
चरणा तुम्हारे
कब से बेचैनकरें इंतजार
आँगन घर-द्वार
इक दो दिखा झलक इन्हें
दे दो गंधोदक इन्हें
ज्यादा और कुछ नहीं चाहता हूँ मैं,
बस जर्रा सा दे दो अपना वक्त हमें,
देखती रहें
‘कि टकटकी लगा के
ये आँखें तुम्हें
है नहीं पखारे
चरणा तुम्हारे
कब से बेचैन
मेरे ये नैन।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
हमें तो भाता साथ,
‘आप’
करें या करें ना बात
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