परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 418=हाईकू=
हुआ क्या गुरु का दीदार,
समझो हुआ भौ-पार ।।स्थापना।।पाँव आप के पखार पाने,
जल लाये चढ़ाने ।।जलं।।तरंग-मन, मार-पाने,
चन्दन लाये चढ़ाने ।।चन्दनं।।सिन्धु-संसार पार पाने,
अक्षत लाये चढ़ाने ।।अक्षतं।।निज आप सा निहार पाने,
पुष्प लाये चढ़ाने ।।पुष्पं।।सितारे चाँद-चार पाने,
व्यञ्जन लाये चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।अंधेरा-मोह संहार पाने,
दीप लाये चढ़ाने ।।दीपं।।उर आप सा उदार पाने,
धूप लाये चढ़ाने ।।धूपं।।सर का भार उतार पाने,
फल लाये चढ़ाने ।।फलं।।भव मानव सँवार पाने,
अर्घ लाये चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
बना आज ‘भी’ पर्याय वाची,
‘नाम’
गुरु का साँची।। जयमाला ।।
याद तेरी
आ के नहीं जाती है ।
रह-रह के रुलाती है ।।
याद तेरी
क्या मैं यहीं रह न जाऊँ गुरु जी
छत्र-छाँव में तेरीसुन भी तो लो जरा
सुन भी तो लो जरा, बात मेरी,
याद तेरी
आ के नहीं जाती है ।आते नहीं तो,
दो भिजा ‘पाती’ ही, गुरु जी
बिन लगाये देरी,
न और फरियाद मेरी
यही दिली मुराद मेरी
याद तेरी
आ के नहीं जाती है ।
रह-रह के रुलाती है ।।हिचकी मेरी
ज्यादा परेशां तो न करतीं गुरु जी ।
मन जो मेरा,
तेरे आस-पास ही देता रहे फेरी
जा गहरे दिल धसके बसी
ओ समरसी !
पहली मुलाकात तेरी,
याद तेरी
आ के नहीं जाती है ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
शुक्रिया,
थमा नजराने-मुस्कान जो मुझे दिया
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