परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 414=हाईकू=
बना गुरु जी ने ‘दिया’,
बदले में कुछ न लिया ।।स्थापना।।सबसे मीठा जल लाये,
तिहारी सेवा में आये ।।जलं।।सबसे नीका चन्दन लायें,
थारी सेवा में आये ।।चन्दनं।।थाली शाली धाँ अक्षत लायें,
थारी सेवा में आये ।।अक्षतं।।द्यु-बागा पीका पुष्प लाये,
तिहारी सेवा में आये ।।पुष्पं।।अद्भुत घी का नैवेद्य लाये,
थारी सेवा में आये ।।नैवेद्यं।।चोर ‘जी’ का गो-घी दिया लाये,
थारी सेवा में आये ।।दीपं।।जित-नासिका सुगंध लाये,
थारी सेवा में आये ।।धूपं।।नन्दन-वनी का फल लाये,
थारी सेवा में आये ।।फलं।।खुद सारीखा अर्घ्य लाये,
तुम्हारी सेवा में आये ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
और सिन्धु में,
छल-हलाहल,
न विद्या-सिन्धु में।। जयमाला।।
है ऐसा ही कब
ए ! मेरे रब
किसी को न संग में रखते हो
पीछी के ये पंख तो रखते ही रखते हो
रख लो मुझे भी अपने संग में
अजनबी नहीं
मैं आता रहता हूँ रोज ही
तुम्हारे सत्संग में
छोड़कर के अपने काम सब
ए ! मेरे रबमुझे भी लो रँगा अपने रंग में
न मार पा रहा हूँ मन की तरंग मैं
न हार पा रहा हूँ अपनों से जंग मैं
जमा…ना
ये जमाना
आ गया हूँ इससे तंग मैं
है दास्ता मेरी बड़ी अजब-गजब,
ए ! मेरे रबतुम डोर हो, हूं पतंग मैं ।
तुम सरोवर, हूं तरंग मैं ।
मैं फूल हूं, हो तुम खूशबू ।
सारे जहां में, है मेरा बस तू ।।
इस बात का है मुझको गरब ।
ए ! मेरे रबहै ऐसा ही कब
ए ! मेरे रब
किसी को न संग में रखते हो
पीछी के ये पंख तो रखते ही रखते हो
रख लो मुझे भी अपने संग में।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
आपके भक्तों में आना,
गुरु जी दो रास्ता बता-ना
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