- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 412
“हाईकू”
आ वसो मन में,
मेरे प्रभो ! रख लो चरण में ।।स्थापना।।
तेरा जरा-सा ध्यान चाहिये,
आया जल मैं लिये ।।जलं।।
आप पाँवों में स्थान चाहिये,
आया चन्दन लिये ।।चन्दनं।।
आप सा स्वाभिमान चाहिये
आया अक्षत मैं लिये ।।अक्षतं।।
गुमान ‘अव-शान’ चाहिये,
आया पुष्प मैं लिये ।।पुष्पं।।
आप-सी पाप हान चाहिये,
आया नैवेद्य लिये ।।नैवेद्यं।।
आप-सा सम्यक् ज्ञान चाहिये,
आया दीप मैं लिये ।।दीपं।।
माथे आप सा भान चाहिये,
आया धूप मैं लिये ।।धूपं।।
सुर-अखर जान चाहिये,
आया श्रीफल लिये ।।फलं।।
कृपा-दृष्टि का दान चाहिये,
आया अर्घ्य मैं लिये ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
टाल हँसी में देते,
गुरु जी,
नहीं दिल पे लेते
।।जयमाला।।
देख तुम्हें
दुलक पड़े
बड़े-बड़े आसु
गुरु जी मैं क्या करूँ
रोके भी
है रुकते नहीं
गुरुजी मैं क्या करूँ
इतने दिनों के बाद
जो हुई तुमसे ये मेरी मुलाकात
आँखों ही आँखों में जर्रा सी बात
जो हुई तुमसे ये मेरी मुलाकात
इतने दिनों के बाद
देख तुम्हें
दुलक पड़े
बड़े-बड़े आसु
गुरु जी मैं क्या करूँ
रोके भी
है रुकते नहीं
गुरुजी मैं क्या करूँ
इतने दिनों के बाद
मिली ये मुस्काने सौगात
हुई ‘कि पूरी ये दिली मुराद
जो मिला आपसे आज
ये खुल के आशीर्वाद
इतने दिनों के बाद
देख तुम्हें
दुलक पड़े
बड़े-बड़े आसु
गुरु जी मैं क्या करूँ
रोके भी
है रुकते नहीं
गुरुजी मैं क्या करूँ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“हाईकू”
गुरु जी आप सिरफ
रहे आओ मेरी तरफ
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