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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 409

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 409

=हाईक=
आ मिरे द्वार भी,
ले लीजे गुरु जी आहार कभी ।।स्थापना।।

अपना,मीरा लो बना मुझे,
भेंटूँ दृग् जल तुझे ।।जलं।।

अपना, चेरा लो बना मुझे,
भेंटूँ चन्दन तुझे ।।चन्दनं।।

अपना, कुछ लो बना मुझे,
भेंटूँ अक्षत तुझे ।।अक्षतं।।

अपना, शिख लो बना मुझे,
भेंटूँ मैं पुष्प तुझे ।।पुष्पं।।

अपना, छोरा लो बना मुझे,
भेंटूँ नैवेद्य तुझे ।।नैवेद्यं।।

अपना, थोड़ा लो बना मुझे,
भेंटूँ मैं दीप तुझे ।।दीपं।।

अपना, दास लो बना मुझे,
भेंटूँ मैं धूप तुझे ।।धूपं।।

अपना, खास लो बना मुझे,
भेंटूँ श्रीफल तुझे ।।फलं।।

अपना भक्त लो बना मुझे,
भेंटूँ मैं अर्घ तुझे ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
उन्हें बढ़ना आया,
गुरु को जिन्हें पढ़ना आया

।। जयमाला।।

और का लौटा आना
और तो और
अपना भी लुटा आना

कहिये सीखा ये हुनर ये कहाँ से
लगता है आये हो तुम दूजे-ही जहाँ से

सरगम और दे आना
और तो और
सर गम और ले आना

सच, बनाये गये हो तुम जुदा ही विधा से
लगता है आये हो तुम दूजे ही जहाँ से
और का लौटा आना
और तो और
अपना भी लुटा आना

कहिये सीखा ये हुनर ये कहाँ से
लगता है आये हो तुम दूजे-ही जहाँ से

डब-डबा नैन आना
और तो और
औरों के हित,गवा अपना चैन आना

हूबहू मिलते-जुलते हो जिनवाणी माँ से
लगता है आये हो तुम दूजे ही जहाँ से
और का लौटा आना
और तो और
अपना भी लुटा आना

कहिये सीखा ये हुनर ये कहाँ से
लगता है आये हो तुम दूजे-ही जहाँ से
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
अपने समो-शरण में,
दे दीजे शरण हमें

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