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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 406

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 406

    =हाईकू=
    तोरा,
    हिवरा मोरा,
    ‘दीवाना’
    चाँद का ज्यों चकोरा ।।स्थापना।।

    जल चढ़ाऊँ,
    ‘के झिल-मिला आपसे गुण पाऊँ ।।जलं।।

    गंध चढ़ाऊँ,
    ‘के आपसी चारित सुगंध पाऊँ ।।चन्दनं।।

    सुधाँ चढ़ाऊँ,
    ‘के रत्नत्रय आप से जुदा पाऊँ ।।अक्षतं।।

    पुष्प चढ़ाऊँ,
    ‘के मन्मथ के न झाँसे में आऊँ ।।पुष्पं।।

    चरु चढ़ाऊँ,
    ‘के क्षुधा रोग से पा निजात जाऊँ ।।नैवेद्यं।।

    दीप चढ़ाऊँ,
    ‘के सम्यक्-ज्ञान आप के जैसा पाऊँ ।।दीपं।।

    धूप चढ़ाऊँ,
    ‘के भाँत आप कर्म धूम उड़ाऊँ ।।धूपं।।

    फल चढ़ाऊँ,
    ‘के बिलकुल आप ‘सा-ही’ कल पाऊँ ।।फलं।।

    अर्घ्य चढ़ाऊँ,
    ‘के सोला वानी शुद्ध हो के दिखाऊँ ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू =
    जहाँ भक्तों की ले चाले अर्जी,
    चले चालें गुरु जी

    ।। जयमाला ।।

    ।। नगन श्रमण वन्दना ।।

    गगन चरण वन्दना ।
    चरण शरण वन्दना ।।
    करुण सदन वन्दना ।
    नगन श्रमण वन्दना ।।१।।

    मदन हरण वन्दना ।
    हरण विघन वन्दना ।।
    क्रुधन क्षरण वन्दना ।
    नगन श्रमण वन्दना ।।२।।

    अमन रमण वन्दना ।
    अब न मरण वन्दना ।
    मनन मगन वन्दना ।
    नगन श्रमण वन्दना ।।३।।

    करण जतन वन्दना ।
    जतन नयन वन्दना ।।
    सजन सुमन वन्दना ।
    नगन श्रमण वन्दना ।।४।।

    कथन प्रशन वन्दना ।
    प्रसन वदन वन्दना ।।
    सुपन तरण वन्दना ।
    नगन श्रमण वन्दना ।।५।।

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू =
    जिन्हें बैठाये हो चरणन में,
    लो बैठा उनमें

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