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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 408

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 408

    “हाईकू”
    आया, लो रँग मीरा रंग,
    रख लो अपने संग ।।स्थापना।।

    दृग् मोति-लर,
    लो स्वीकार कर, ये जल गागर ।।जलं।।

    दृग् गंग धार,
    लो स्वीकार, चन्दन से मनहार ।।चन्दनं।।

    नम नयन,
    आया, लाया धाँ शालि अक्षत कण ।।अक्षतं।।

    आँख पनीली,
    आया, लाया पिटार पुष्प भा-पीली ।।पुष्पं।।

    दृग् बिन्दु झिर,
    लो स्वीकार कर नैवेद्य घी गाय गिर ।।नैवेद्यं।।

    नेत्र सजल,
    आया, लाया प्रदीप लौं अविचल ।।दीपं।।

    नम दृग् कोर,
    आया, लाया दशांग धूप बेजोड़ ।।धूपं।।

    नयना सीले,
    आया, लाया ये ऋत फल रसीले ।।फलं।।

    भींजे भींजे दृग्,
    आया, लाया अरघ कुछ अलग ।।अर्घ्यं।।

    “हाईकू”
    जाता बदल,
    दफा-इक जो गुरु से आता मिल

    ।। जयमाला ।।

    दृग् तारक श्री-मन्तो ।
    जग पालक जयवन्तो ।।
    पुरु कलजुग जयवन्तो ।
    गुरु सतजुग जयवन्तो ।।१।।

    पावन पग जयवन्तो ।
    माहन रग जयवन्तो ।।
    करुणा डग जयवन्तो ।
    पुरु मारग जयवन्तो ।।२।।

    अभिजित अख जयवन्तो ।
    सार्थक शिख जयवन्तो ।।
    सत् ज्ञायक जयवन्तो ।
    यत नायक जयवन्तो ।।३।।

    एक सजग जयवन्तो ।
    नेक झलक जयवन्तो ।।
    औ शिक्षक जयवन्तो ।
    गौ रक्षक जयवन्तो ।।४।।

    शाश्वत रिख जयवन्तो ।
    भास्वत इक जयवन्तो ।।
    दृश इक टक जयवन्तो ।
    दिश् दश तक जयवन्तो ।।५।।

    ।। जयमाला पूर्णार्घं।।

    “हाईकू”
    खिताबे-मीरा कर मेरे नाम दो,
    मेरे श्याम ओ

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