- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 391
=हाईकू=
छिपाये सिन्धु रतन,
सिर्फ तेरे लिये भगवन् ।।स्थापना।।
पाये शबरी ने राम,
हिस्से मेरे आँसू त्राहि माम् ।।जलं।।
शबरी सब-ही गई पा,
यहाँ भी दृष्टि दो उठा ।।चन्दनं।।
चाँदी शबरी की सोना,
झोरी मोरी खाली देखो ना ।।अक्षतं।।
टके शबरी चुनर तारे,
नम नैन हमारे |।पुष्पं।।
शबरी फाड़ छप्पर मिला,
क्या कोई मुझसे गिला |।नैवेद्यं।।
शबरी उड़ी पतंग,
बुहारूँ मैं भी अन्तरंग |।दीपं।।
शबरी फूली न समाई,
नींद भी मुझे न आई ।।धूपं।।
शबरी आई सुर्ख़ियों में,
मैं अभी भी दुखियों में ।।फलं।।
पुण्य कमाने आया,
‘शबरी’ द्रव्य भिंटाने लाया ।।अर्घं।।
=हाईकू =
चुटकियों में,
छुटा दें बन्धन से, गुरु जी हमें
।। जयमाला।।
मुलाकात हुई
धीरे-धीरे तुमसे बात हुई
जो कि इतनी बड़ी
लगी आँसुओं की झड़ी
रात और दिन
तुम्हारे बिन
कहीं न पाते चैन
हैं भर-भर आते नैन
म्हारे भगवन्
तुम्हारे बिन ।
मुलाकात हुई
धीरे-धीरे तुमसे बात हुई
जो कि इतनी बड़ी
लगी आँसुओं की झड़ी
रात और दिन
तुम्हारे बिन
लगता न कहीं जिया
बनी बावरी सी धिया
अय ! दिले धड़कन
तुम्हारे बिन ।
मुलाकात हुई
धीरे-धीरे तुमसे बात हुई
जो कि इतनी बड़ी
लगी आँसुओं की झड़ी
रात और दिन
तुम्हारे बिन
बोझिल सी जिन्दगी
हुई मेहमान हर खुशी
हुये वर्षों से छिन ।
तुम्हारे बिन ।
मुलाकात हुई
धीरे-धीरे तुमसे बात हुई
जो कि इतनी बड़ी
लगी आँसुओं की झड़ी
रात और दिन
तुम्हारे बिन
म्हारे भगवन ।
अय ! दिले धड़कन ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
मुझे भक्तों में लो बैठा अपने,
न और सपने
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