- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 386
==हाईकू==
आप दर्शन करा ‘सके’ कर,
‘कि आये भास्कर ।।स्थापना।।
गुरु पद में,
जो दृग्-जल चढ़ाते,
वो तर जाते ।।जलं।।
गुरु पद में,
जो ‘संदल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।चन्दनं।।
गुरु पद में,
जो ‘तण्डुल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।अक्षतं।।
गुरु पद में,
जो ‘द्यु गुल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।पुष्पं।।
गुरु पद में,
जो ‘शकल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।नैवेद्यं।।
गुरु पद में,
जो ‘अचल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।दीपं।।
गुरु पद में,
जो ‘अगर’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।धूपं।।
गुरु पद में,
जो ‘श्रीफल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।फलं।।
गुरु पद में,
जो ‘सकल’ चढ़ाते,
वो तर जाते ।।अर्घ्यं।।
==हाइकू ==
नफरत न करें किसी से,
गुरु जी आरसी-से
।। जयमाला।।
चल चल बुला रहे
गुरु खिवैय्या
पल-पल बतला रहे
खाली अभी नैय्या
तुरत दौड़ आ जाओ
कहीं और ना जाओ
चिलचिलाती धूप हर कहीं
है सिर्फ यहीं छैय्या
चले जाते हैं दूर जितनी उन्मार्ग में
लगे आने में देर उतनी सन्मार्ग में
इसी ओर आ जाओ
कहीं और ना जाओ
चल चल बुला रहे
गुरु खिवैय्या
पल-पल बतला रहे
खाली अभी नैय्या
तुरत दौड़ आ जाओ
कहीं और ना जाओ
चिलचिलाती धूप हर कहीं
है सिर्फ यहीं छैय्या
भले आ गये दूर कितनी उन्मार्ग में,
न लगे आने में देर उतनी सन्मार्ग में,
पकड़ मोड़ आ जाओ
इसी ओर आ जाओ
कहीं और ना जाओ
चल चल बुला रहे
गुरु खिवैय्या
पल-पल बतला रहे
खाली अभी नैय्या
तुरत दौड़ आ जाओ
कहीं और ना जाओ
चिलचिलाती धूप हर कहीं
है सिर्फ यहीं छैय्या
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू ==
दे आशीष यूँ ही,
लौटते रहना, नमोऽस्तु भेजी,
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