परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 380हाईकू
आता उन्हीं में मैं भी,
तुम्हें अपनी जिन्होंने जाँ दी ।।स्थापना।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
आये तर दृग्-कोने ।।जलं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये गंध चढ़ाने ।।चन्दनं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये शाली धाँ दाने ।।अक्षतं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये पुष्प सुहाने ।।पुष्पं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये व्यञ्जन नोने ।।नैवेद्यं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये दीप सलोने ।।दीपं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये धूप ये खेने ।।धूपं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये फल मखाने ।।फलं।।मर्कट-मन, शान्त बैठाने,
लाये अर्घ्य नवीने ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
कोई रुठ न पाता है,
जादू गुरु जी को आता हैजयमाला
बाजे बधाई
उनके द्वारे
घर हमारे
कब निहारोगे
भक्त वत्सल श्री राम की तरह
अय ! शरण-वेवजह
कब पधारोगे
अपनी शबरी की नगरी
कब निहारोगेदूर गला,
दूर हृदय
अय ! शरण बेवजह
अब तो भर आँख भी आई,
आ भी जाओ गुरुराई
बाजे बधाई
उनके द्वारे
घर हमारे
कब निहारोगेभक्त वत्सल महावीर की तरह,
अय ! शरण बेवजह
कब पधारोगे,
अपनी चन्दन के आंगन
कब निहारोगेदूर गला,
दूर हृदय,
अय ! शरण बेवजह
अब तो भर आँख भी आई,
आ भी जाओ गुरुराई
बाजे बधाई
उनके द्वारे
घर हमारे
कब निहारोगेभक्त वत्सल श्री राम की तरह
अय ! शरण बेवजह
कब पधारोगे
अपनी शबरी की नगरी
कब निहारोगे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
गीत तुम्हारे,
कुछ कर दो ऐसा,
हों स्वर म्हारे
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