परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 375=हाईकू=
छुये आनंद ही आनंद,
आगम ‘सन्त’ बसन्त ।।स्थापना।।मेरी कुटिया में आज तुम आये,
दृग् भर आये ।।जलं।।आ तुमनें की कुटिया मेरी धन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।आये हो तुम, जो मेरी कुटिया में,
भेंटूँ धाँ तुम्हें ।।अक्षतं।।मेरी कुटिया में, जो आये हो तुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।कुटिया मेरी धन आ तुमनें की,
भेंटूँ चरु घी ।।नैवेद्यं।।तुम जो आये हो मेरी कुटिया में,
भेंटूँ दीवा मैं ।।दीपं।।आ तुमनें की धन कुटिया मेरी,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।भेंटूँ भेले,
पा तुम्हें कुटिया मेरी रंग उड़ेले ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ्य,
= हाई-को=
पा गई कुटिया मेरी नजारा स्वर्ग ।।अर्घ्यं।।
श्री गुरु कान करें बन्द,
शोर से न करें द्वन्द=जयमाला=
पहुँचे हुये सन्तों में
आता किसी का नाम
वो तुम्हीं तो,
हो तुम्हीं वोमीरा मुझ अय ! श्याम
शबरी मुझ अय ! राम
आता किसी का नाम भावी भगवन्तों में,
पहुँचे हुये सन्तों मे,
आता किसी का नाम
वो तुम्हीं तो,
हो तुम्हीं वोतुम भौ जल वैसे
जल कमल जैसे
आता किसी का नाम, करुणा धनवन्तों में,
पहुँचे हुये सन्तों मे,
आता किसी का नाम
वो तुम्हीं तो,
हो तुम्हीं वोअल्हण-मनमौजी !
चैनेक अमन खोजी !
आता किसी का नाम, विवेकी हंस नन्तों में,
पहुँचे हुये सन्तों मे,
आता किसी का नाम
वो तुम्हीं तो,
हो तुम्हीं वोमाथ श्रमण-रोली !
सुमन-दीवाली होली !
आता किसी का नाम, चलते-फिरते ग्रन्थों में,
पहुँचे हुये सन्तों मे,
आता किसी का नाम
वो तुम्हीं तो,
हो तुम्हीं वो
।। जयमाला पूर्णार्घं।।*हाईकू*
ले चालो मुझे भी खींचे,
कहीं रह न जाऊँ पीछे
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