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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 368

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 368

    *हाईकू*

    पाप मन के खो जाते,
    श्री भगवन् के जो हो जाते ।।स्थापना।।

    ले आये नीर नयन,
    खोजे, न पाये जल कण ।।जलं।।

    भेंटूँ चन्दन,
    ‘जि गुरु जी आप सा ही’ पाने मन ।।चन्दनं।।

    लत गलत बिलाये,
    ले भाव से अक्षत लाये ।।अक्षतं।।

    बागवाँ,
    पुष्प छू लीजिये, दीजिये छुवा आसमाँ ।।पुष्पं।।

    चरु भेंटते ही भेंटे खुश्बू,
    दर तुम्हारा प्रभू ।।नैवेद्यं।।

    दीपक लाया,
    चढ़ाया,
    ऋषिराया !
    मेंटो ‘ही’ माया ।।दीपं।।

    लाये धूप ये माँझी,
    जन्मान्तर से स्वप्न ‘वा बा’जी ।।धूपं।।

    फल तो उपलक्षण,
    सर्वस्व ही करूँ अर्पण ।।फलं।।

    भेंटूँ शरण बेवजह !
    चरणों में अर्घ्य यह ।।अर्घ्यं।।

    हाईकू

    भले ले लेते,
    ‘सिर दर्द’
    श्री गुरु न कभी देते

    जयमाला

    ।। जयतु जय ।।

    स्वर्ग चय ।
    श्रमण अय ! ।।
    रहित भय ।
    दुरित क्षय ।।
    जयतु जय ।
    जय जयतु जय ।।१।।

    थल अभय ।
    पुन निलय ।।
    उर सदय ।
    पृथु हृदय ।।
    जयतु जय ।
    जय जयतु जय ।।२।।

    अख विजय ।
    जित विषय ।।
    गृह विनय ।
    साध लय ।।
    जयतु जय ।
    जय जयतु जय ।।३।।

    भांत पय ।
    बद विलय ।।
    सिद्ध तय ।
    आत्ममय ।।
    जयतु जय ।
    जय जयतु जय ।।४।।

    ।। जयमाला पूर्णार्घं।।

    *हाईकू*

    छू गुरु चर्ण सरोज,
    हल्का होता ही होता बोझ

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