परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 361=हाईकू=
उनका दास हूँ,
झिरें और हित जिनके आँसू ।।स्थापना।।स-मँझधार
लिये जल,
बना लो समझदार ।।जलं।।मैं माटी-माधो,
लिये चन्दन,
बना लो पाठी साधो ।।चन्दनं।।मैं सीधा सादा,
लिये अक्षत,
बना लो वीणा साधा ।।अक्षतं।।‘मैं भोला भाला,
लिये पुष्प,
बना लो छोरा निराला ।।पुष्पं।।ढपोर शंख,
लिये चरु,
बना लो बेजोड़ अंक ।।नैवेद्यं।।मैं भग्न-घट
लिये दीप,
बना लो त्रिरत्न भट ।।दीपं।।उलझा धागा,
लिये धूप,
बना लो सोने सुहागा ।।धूपं।।मैं फटा बाँस,
लिये श्री फल
बना लो छटा खास ।।फलं।।कागद गुल,
लिये अरघ,
बना लो निराकुल ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
किसी के आँसू,
‘छू न पायें भू’
जपें सन्त,
ये मन्त्र।।जयमाला।।
दिया मन भर
बिन माँगे गुरुवर
आपने हमेशा
मुझे देख के परेशाँ
रख दिया हाथ सर पर
चलाकर
चलकर आकर
कहा ‘मैं हूँ ना’
मत कर फिकरदिया मन भर
बिन माँगे गुरुवर
आपने हमेशा
मुझे देख के परेशाँ
गोद रख लिया उठा कर
चलाकर
चलकर आकर
कहा ‘मैं हूँ ना’
मत कर फिकरदिया मन भर
बिन माँगे गुरुवर
आपने हमेशा
मुझे देख के परेशाँ
मुस्कान दी कर इक नजर
चलाकर
चलकर आकर
कहा ‘मैं हूँ ना’
मत कर फिकरदिया मन भर
बिन माँगे गुरुवर
आपने हमेशा
मुझे देख के परेशाँ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
गुरु जो थामें,
आती ही आती कमी आकुलता में
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