परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 352==हाईकू==
मेरा भी मन,
सँजो लाया मीरा सा दीवानापन ।।स्थापना।।प्रार्थना सुन,
जल ये, व मुझे लो अपना चुन ।।जलं।।अरजी सुन,
गंध ये, व मुझे लो अपना चुन ।।चन्दनं।।विनती सुन,
सुधाँ ये, व मुझे लो अपना चुन ।।अक्षतं।।शुभ शगुन !
पुष्प ये, व मुझे लो अपना चुन ।।पुष्पं।।गुम औगुन !
चरु ये, व मुझे लो अपना चुन ।।नैवेद्यं।।सुत’ भी धुन’
दीप ये, व मुझे लो अपना चुन ।।दीपं।।बेजोर पुन !
धूप ये, व मुझे लो अपना चुन ।।धूपं।।गृह सद्-गुण
फल ये, व मुझे लो अपना चुन ।।फलं।।कृपया सुन,
अर्घ ये, व मुझे लो अपना चुन ।।अर्घ्यं।।==हाईकू==
बात ऐसी, ‘कि जा चुभे ‘जी’
करें ही नहीं गुरु जी।।जयमाला।।
तुमसे प्रवचन जो सुनते हैं,
तो लगता है, सुनते ही जाओ ।
तुमसे सद्-गुण जो चुनते हैं,
तो लगता है, चुनते ही जाओ ।लगाई लगता माटी दूजी
बनाने में तुम्हें गुरु जी ।।
चाँद में दाग क्योंकि
भान में आग क्योंकि
एक बड़ भाग तुम्हीं
दीवाली मना रहे फाग तुम्हीं ।
एक बड़ भाग तुम्हींलगाई लगता माटी दूजी
बनाने में तुम्हें गुरु जी ।।
न सोने सुहाग क्योंकि
‘कोयल’ सम-काग क्योंकि
एक बड़ भाग तुम्हीं
दीवाली मना रहे फाग तुम्हीं ।
एक बड़ भाग तुम्हींलगाई लगता माटी दूजी
बनाने में तुम्हें गुरु जी ।।
चन्दन घर नाग क्योंकि
निर्झर अर झाग क्योंकि
एक बड़ भाग तुम्हीं
दीवाली मना रहे फाग तुम्हीं ।
एक बड़ भाग तुम्हीं।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू ==
होने पार, लगाओ जोरदार
गुरु-जै-कार
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