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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 347

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 347

    =हाईकू=
    झूमे शबरी,
    ए ! राम मेरे
    अब बारी हमरी ।।स्थापना।।

    आये दृग् जल साथ
    ‘अपना’
    सर रख दो हाथ ।।जलं।।

    आये चन्दन साथ
    ‘अपना’
    कर लो ना दो बात ।।चन्दनं।।

    आये अक्षत साथ,
    ‘अपना’
    दे भी दो आशीर्वाद ।।अक्षतं।।

    आये सुमन साथ,
    ‘अपना’
    पूर भी दो मुराद ।।पुष्पं।।

    आये नैवेद्य साथ,
    ‘अपना’
    दिला भी दो क्षुध् मात ।।नैवेद्यं।।

    आये दीपक साथ,
    ‘अपना’
    कीजो अपने भाँत ।।दीपं।।

    आये सुगंध साथ,
    ‘अपना’
    कर्म-बंध दो काट ।।धूपं।।

    आये श्रीफल साथ,
    ‘अपना’
    कीजो सन्मृत्यु हाथ ।।फलं।।

    आये अरघ साथ,
    ‘अपना’
    बना भी दो ‘ना’ बात ।।अर्घं।।

    =हाईकू=
    देख बच्चों को छूते आसमाँ,
    झूमें गुरु ‘और’ माँ !

    ।। जयमाला।।
    मन के, गिनके धड़कन
    यूँ ही करता रहूँ सुमरण
    आपका, मैं हमेशा,
    वरदान दो ऐसा ।
    अय कल जिनेशा !

    जुबां जब पलट खाने लगे ।
    श्वास ये कट कट के आने लगे
    तब हो गोदी तेरी
    और सर मेरा
    करूँ में यूँ सु-मरण
    मन के, गिनके धड़कन
    यूँ ही करता रहूँ सुमरण
    आपका, मैं हमेशा,
    वरदान दो ऐसा ।
    अय कल जिनेशा !

    नशा कामयाबी छाने लगे
    निशा कामयाबी छाने लगे
    तब हो दृग्-ज्योती तेरी
    और आँखें मेरी
    सुलझा मैं लूँ उलझन
    मन के, गिनके धड़कन
    यूँ ही करता रहूँ सुमरण
    आपका, मैं हमेशा,
    वरदान दो ऐसा ।
    अय कल जिनेशा !

  • ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू =
    ‘अपना’, कह के दे पुकार तू,
    न और आरजू

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