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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 342

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 342

    हाईकू

    थारे बिना ‘जि गुरु जी
    तन्हा तन्हा, मन आँगना ।।स्थापना।।

    भेंटूँ मैं जल, साथ श्रद्धा बेछोर,
    हाथों को जोड़ ।।जलं।।

    भेंटूँ चन्दन मलयज मेैं घोर,
    हाथों को जोड़ ।।चन्दनं।।

    भेंटूँ अक्षत मैं साबुत परोर,
    हाथों को जोड़ ।।अक्षतं।।

    चढ़ाऊँ पुष्प चुन चुन बेजोड़,
    हाथों को जोड़ ।।पुष्पं।।

    भेंटूँ मैं घृत-व्यञ्जन चित्त चोर,
    हाथों को जोड़ ।।नैवेद्यं।।

    चढ़ाऊँ दीप मैं बाती घृत बोर,
    हाथों को जोड़ ।।दीपं।।

    भेंटूँ मैं धूप हो के भाव विभोर,
    हाथों को जोड़ ।।धूपं।।

    भेंटूँ श्रीफल सकल न’ कि तोड़,
    हाथों को जोड़ ।।फलं।।

    भेंटूँ मैं अर्घ,
    भिंजा अश्रु दृग्-कोर,
    हाथों को जोड़ ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=

    भीजें अभी भी मोर नयना
    झुक झूमें चन्दना

    जयमाला

    आप दीदार पातीं हैं ।
    ‘जि गुरु जी
    आँखें ये मेरी, पा करार जातीं हैं ।

    हो ही तुम, इतने खूबसूरत ।
    दया क्षमा मूरत !
    शुभ मुहूरत !
    हो ही तुम, इतने खूबसूरत ।
    मैं ही नहीं
    कह रहीं यहीं

    सूती डोरियाँ ।
    जन-जन की हुईं, दिल की चोरियाँ ।।
    और है भी सही
    अक्षर कीरत !
    ओ ! चल तीरथ ।
    हो ही तुम, इतने खूबसूरत ।
    मैं ही नहीं
    कह रहीं यहीं

    बेजुबाँ गैय्याँ ।
    और इक नहीं कई, छोर छू गईं नैय्याँ ।।
    और है भी सही ।
    गत स्वारथ !
    प्रतिभा रत !
    हो ही तुम, इतने खूबसूरत ।
    मैं ही नहीं
    कह रहीं यहीं

    नस्ले जवॉं ।
    सारी जमीं, कहे आसमाँ भी होके इक जुबाँ ।।
    और है भी सही
    ‘जि गुरु जी
    आँखें ये मेरी, पा करार जातीं हैं ।

    ।।जयमाला पूर्णार्घ्यं।।

    हाईकू

    आ जाया करो ‘ना’
    यूँ ही रोज प्रभु ‘म्हारे’ आँगना

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