परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 340हाईकू
मेरे भगवन्
दर्शन आ दो
नैना सावन भादों ।।स्थापना।।जल चढ़ाऊँ,
कल फिर बुलाने ‘कि मना पाऊँ ।।जलं।।गंध चढ़ाऊँ,
‘कि पुन: ऐसे पल-स्वर्णिम पाऊँ ।।चन्दनं।।थाली धाँ शाली चढ़ाऊँ,
दीवाली ‘कि रोज मनाऊँ ।।अक्षतं।।पुष्प चढ़ाऊँ,
स्वप्न जो हुआ पूरा, ढ़ोल बजाऊँ ।।पुष्पं।।चरु चढ़ाऊँ,
तुम्हें घर अपने पा नाचूँ गाऊँ ।।नैवेद्यं।।दीप जगाऊँ,
यूँ ही तेरे अपनों में ‘कि आ पाऊँ ।।दीपं।।धूप चढ़ाऊँ,
पा गुपाल गुलालो-रंग उड़ाऊँ ।।धूपं।।भेला चढ़ाऊँ,
पा तुम्हें अतिथि न फूला समाऊँ ।।फलं।।थारी राह,
न देखती रहे फिर म्हारी निगाह ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
खोला ‘कि पाल
ले चालें उस पार
गुरु हवाएँजयमाला
कृतियाँ तुम्हारीं ।
खुदबखुद पुकारीं ।
ऊँची कोटी के हो तुम ।
विद्वान चोटी के हो तुम ।प्रति-कृतियाँ तुम्हारीं ।
संथापित प्रतिमा तुम्हारीं ।।
जा दूर तक पुकारीं ।
सबसे जुदा हो तुम ।
दूजे खुदा हो तुम ।।गुशाल, गैय्यां तुम्हारीं ।
साड़ी हथकरघा तुम्हारीं ।
जा दूर तक पुकारीं ।
कोई फरिश्ते तुम ।
नेकी के रस्ते तुम ।।नन्ही मुन्नी कलियाँ तुम्हारीं
प्रतिभा स्थालियाँ तुम्हारीं
जा दूर तक पुकारीं ।
रहनुमा हो तुम ।
मां क्षमा हो तुम ।।कृतियाँ तुम्हारीं ।
खुदबखुद पुकारीं ।
ऊँची कोटी के हो तुम ।
विद्वान चोटी के हो तुम ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।हाईकू
लगाना ‘चौका’ लगाने सा,
भले न आयें गुरु-सा
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