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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 337

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 337

    ==हाईकू==

    दिखा, तुझसे फीका,
    ‘देखा चाँद’
    न तुझ सरीखा ।।स्थापना।।

    रहे स्वप्न न सम्यक् दर्शन,
    भेंटूँ जल नयन ।।जलं।।

    रहे स्वप्न न सदाचरण,
    भेंटूँ घट चन्दन ।।चन्दनं।।

    रहे स्वप्न न स्वानुभवन,
    भेंटूँ धाँ शालि कण ।।अक्षतं।।

    रहे स्वप्न न जय नयन,
    भेंटूँ दिव्य सुमन ।।पुष्पं।।

    रहे स्वप्न न जै क्षुध् वेदन,
    भेंटूँ घृत व्यंजन ।।नैवेद्यं।।

    रहे स्वप्न न धी हंस धन,
    भेंटूँ दीप रतन ।।दीपं।।

    रहे स्वप्न न जै कर्म रण,
    भेंटूँ सुगंध अन ।।धूपं।।

    रहे स्वप्न न शिव-सदन,
    भेंटूँ फल चमन ।।फलं।।

    रहे स्वप्न न पड़गाहन,
    भेंटूँ अर्घ्य भगवन् !।।अर्घ्यं।।

    ==हाईकू==

    मेरी थकान
    छू-मन्तर, छू एक तेरी मुस्कान

    जयमाला

    दे…बता जरा क्या नुस्खा है ।
    क्यूँ आता तुझे न गुस्सा है ।

    कषाय तेरी होने लगी शमन ।
    किसी से तुझे होती नहीं जलन ।।
    अपने काम से, बस मतलब तुझे ।
    है ही नहीं किसी से नफ़रत तुझे ।।
    देवता क्या राज इसका है ।

    दया से तेरे भींगे रहते नयना ।
    दुआ से तेरे भींगे रहते वयना ।।
    क्षमा मांगने से ही पहले ।
    कर देते क्षमा, हो गलती भले ।।
    दे…बता जरा क्या नुस्खा है ।

    दुखड़ा हर किसी का लेते सुन ।
    तुम मोह, हर किसी का लेते मन ।।
    जिस किसी के पोंछ आते आंसू ।
    मंजिल तक ठेल आते बन पाछी वायू ।।
    दे…बता जरा क्या नुस्खा है ।
    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    ==हाईकू==

    न रहें माँएँ देखे बिना,
    बच्चों में अक्स अपना

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