परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 335==हाईकू==
दे मुस्कान दो
समान सम्मान औ’ अपमान ओ ! ।।स्थापना।।आना-जाना ‘कि विध्वंस जाये,
जल चढ़ाने लाये ।।जलं।।पाप-ताप ‘कि विध्वंस जाये,
भेंट चन्दन लाये ।।चन्दनं।।मद-गद ‘कि विध्वंस जाये,
भेंट अक्षत लाये ।।अक्षतं।।नाम-काम ‘कि विध्वंस जाये,
पुष्प चढ़ाने लाये ।।पुष्पं।।भोग-रोग ‘कि विध्वंस जाये,
चरु चढ़ाने लाये ।।नैवेद्यं।।तम-स्वयं ‘कि विध्वंस जाये,
दीप चढ़ाने लाये ।।दीपं।।भव-दव ‘कि विध्वंस जाये,
धूप चढ़ाने लाये ।।धूपं।।रति-गति ‘कि विध्वंस जाये,
फल चढ़ाने लाये ।।फलं।।अघ-मग ‘कि विध्वंस जाये,
अर्घ्य चढ़ाने लाये ।।अर्घ्यं।।==हाईकू==
छूने अजूबा,
आ गुरु-ज्ञान गंगा में, ‘साधो डूबा’।। जयमाला ।।
करता तेरी तारीफें मेरा दिल है ।
इक अजनबी को दी,
शरणा तेरी तारीफे काबिल है ।।तूने मेरे जीवन का, सूना सूनापन,
अधूरापन कर दिया छू है ।
तूने मेरे जीवन में, भर दी खुशबू है ।
करुणा तेरी तारीफे काबिल है ।
करता तेरी तारीफें मेरा दिल है ।तूने रोशनी, हर खुशी,
कर दी मेरे संग है ।
तूने जीवन में मेरे, भर दिया रंग है ।।
ओ रुको रुको कह रही, वो मंजिल है ।
करता तेरी तारीफें मेरा दिल है ।पाखी जीवन,
पा गया फिर से पंख है ।
पा के पंकज,
आसमां में छाया पंक है ।
अब दूर न ज्यादा,
वो दिखने लगा साहिल है ।
करता तेरी तारीफें मेरा दिल है ।।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
नैन पड़ते न भिंजोने,
माँएँ दें थमा खिलौने
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