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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 334

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 334

    ==हाईकू==
    ‘माँए’ बलाएँ,
    ले जायें चल के,
    आ के मुस्कुरा के ।। स्थापना।।

    बर्से कृपा, ‘कि आपकी, इसलिये,
    जल ये लिये ।।जलं।।

    बर्से दया ‘कि आपकी, इसलिये,
    चन्दन लिये ।।चन्दनं।।

    दृष्टि पड़े ‘कि आपकी, इसलिये,
    अक्षत लिये ।।अक्षतं।।

    भक्ति मिले ‘कि आपकी, इसलिये,
    पुष्प ये लिये ।।पुष्पं।।

    सेवा मिले ‘कि आपकी, इसलिये,
    नैवेद्य लिये ।।नैवेद्यं।।

    मुस्काँ मिले ‘कि आपकी, इसलिये,
    दीप ये लिये ।।दीपं।।

    पाँय धूली ‘कि आपकी इसलिये,
    धूप ये लिये ।।धूपं।।

    मिले डाट ही आपकी, इसलिये
    श्री फल लिये ।।फलं।।

    मिले संगति आपकी, इसलिये,
    अर्घ्य ये लिये ।।अर्घ्यं।।

    ==हाईकू==
    थमाते और न,
    ‘रिमोट कन्ट्रोल’
    गुरु ‘अपना’

    ।।जयमाला।।

    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।

    नन्दन श्रीमत ।
    इक जगत् जगत ।।
    अक्षर श्रुत रत ।
    शिव सुन्दर सत ।।
    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।१।।

    अनगारन पत ।
    पत ऋषि मुनि यत ।।
    निवसत घट घट ।
    रत्नत्रय भट ।।
    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।२।।

    उपरत तिय गद ।
    नभ परशित कद ।।
    अरिहन समरथ ।
    अभिजित मन्मथ ।।
    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।३।।

    नत प्रणत विनत ।
    रक्षक संस्कृत ।।
    संज्ञान अमृत ।
    प्रकटत सुमरत ।
    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।४।।

    दिव पथ सन्मत ।
    शिव रथ, गत मद ।।
    हित गुण संपद ।
    जय जयत जयत ।।
    जय जयत जयत
    जयत जय जयत जयत ।।५।।

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    ==हाईकू==
    होता आसान, छूना आसमान,
    पा गुरु मुस्कान

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