परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 332==हाईकू==
न चरण ही,
‘छू आते भव्य’
गुरु आचरण भी ।।स्थापना।।बिठाने गोद होलिका,तृषा,
भेंटूँ जल कलशा ।।जलं।।बिठाने गोद होलिका,हट,
भेंटूँ चन्दन घट ।।चन्दनं।।बिठाने गोद होलिका,काल,
भेंटूँ अक्षत थाल ।।अक्षतं।।बिठाने गोद होलिका,मार,
भेंटूँ पुष्प पिटार ।।पुष्पं।।बिठाने गोद होलिका,असत्,
भेंटूँ नैवेद्य घृत ।।नैवेद्यं।।बिठाने गोद होलिका,धी धिक्,
भेंटूँ घृत दीपक ।।दीपं।।बिठाने गोद होलिका,बंध,
भेंटूँ धूप-सुगंध ।।धूपं।।बिठाने गोद होलिका,छल,
भेंटूँ फल श्री फल ।।फलं।।बिठाने गोद होलिका,अघ,
भेंटूँ दिव्य अरघ ।।अर्घ्यं।।==हाईकू==
हार, हो हार पहनना,
तो गुरु जी से मिलना।। जयमाला।।
पल-पलक,
मुझे कोई तकलीफ छुये,
ऐसा हो सकता नहीं, तेरे होते हुये
और आज तलक,
ऐसा हुआ न कभी,
ऐसा हो सकता नहीं,माँ होती जो पास में ।
कब आते आँसु आँख में ।।
वैसे किससे छुपा,
किस्से किस्से छपा,
होगा ही पता हमें ।
कब आते आँसु आँख में ।
माँ होती जो पास में ।।हो बरगदी छाया घनी ।
गर्मी भागती समेट माया अपनी ।।
ठण्डी में धूप गुनगुनी ।
तू आवाज़ मेरी, कब करें अनसुनी ।।पल-पलक,
मुझे कोई तकलीफ छुये,
ऐसा हो सकता नहीं, तेरे होते हुये
और आज तलक,
ऐसा हुआ न कभी,
ऐसा हो सकता नहीं,तेरी आंखें नम हैं क्योंकि ।
तू थोड़ा रहम दिल चूंकि ।
तू हुआ जब से मेरा,
दिल में न कोई गम है बाकी ।।
पल-पलक,
मुझे कोई तकलीफ छुये,
ऐसा हो सकता नहीं, तेरे होते हुये।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
इंकार करूँ, जो मैं तेरा कहा,
न आये वो लम्हा
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