- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 322
हाईकू
सुना !
पा गया मोती सीप
हूँ मैं भी खड़ा-समीप ।।स्थापना।।
प्रणाम,
करे परेशां पाप
कीजे समाँ आप ।।जलं।।
प्रणाम
करे परेशां राग
कर दीजे बेदाग ।।चन्दनं।।
प्रणाम
करे परेशां रोष
कीजे सद्-गुण कोष ।।अक्षतं।।
प्रणाम,
करे परेशां काम,
दीजे थमा मुकाम ।।पुष्पं।।
प्रणाम,
करे परेशां क्षुधा
भेंटें कृपया सुधा ।।नैवेद्यं।।
प्रणाम,
करे परेशां गुमाँ
दीजे छुवा आसमाँ ।।दीपं।।
प्रणाम,
करे परेशां क्रोध
दीजे कृपया बोध ।।धूपं।।
प्रणाम,
करे परेशां ठगी
दीजे बना जिन्दगी ।।फलं।।
प्रणाम,
करे परेशां लोभ
मेटें कृपया क्षोभ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
दृग् रस्ते,
दिल निवसते, जा रहा है जो,
हो तुम वो
जयमाला
दे के गुरुजी को आहार
दे के गुरुजी को आहार
आज कुटिया में छाई खुशियाँ अपार
आज दुखिया ने पाईं खुशियाँ अपार
दे के गुरुजी को आहार
दे के गुरुजी को आहार
दिल-खोल छमा-छम नाच रहा ।
बज ढोल ढ़मा-ढ़म आज रहा ॥
आज मनवा ने पाई खुशियाँ अपार ।
आज कुटिया में छाई खुशियाँ अपार
आज दुखिया ने पाईं खुशियाँ अपार
दे के गुरुजी को आहार
दे के गुरुजी को आहार
बिन बोले दृग् सब बोल गये ।
पा आँसू खुशी कपोल गये ।।
आज नयना ने पाईं खुशियाँ अपार ।
आज कुटिया में छाई खुशियाँ अपार
आज दुखिया ने पाईं खुशियाँ अपार
दे के गुरुजी को आहार
दे के गुरुजी को आहार
सरगम सासों का झनकारे ।
सर…गम मानों उतरे सारे ॥
आज सासों ने पाई खुशियाँ अपार ॥
आज कुटिया में छाई खुशियाँ अपार
आज दुखिया ने पाई खुशियाँ अपार
दे के गुरुजी को आहार
दे के गुरुजी को आहार
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
हाईकू
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
प्रभो ! मेरे
दो मेंट अंधेरे
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