परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 321=हाईकू=
सुना ! माटी दी बना घड़ा,
कतार में, मैं भी खड़ा ।।स्थापना।।ढ़ोला दृग् जल भर-भर,
उतरा तब जहर ।।जलं।।भेंटी गन्ध,
न चन्दन यूँ ही नेक एक सुगंध ।।चन्दनं।।पीले चावल चढ़ाये,
वीर तब आँगन आये ।।अक्षतं।।श्रद्धा सुमन चढ़ाये,
ताले तब जा खुल पाये ।।पुष्पं।।हैं भेंटे स्वर-व्यञ्जन,
निरञ्जन तब अञ्जन ।।नैवेद्यं।।बाली भीतर ज्योती,
सीप पा सकी तब जा मोती ।।दीपं।।गन्धोदक ने जाग पाई,
न सोना सुगंध आई ।।धूपं।।ना ‘रियल’ श्री फल भेला बना,
पा आप शरणा ।।फलं।।चढ़ाये अर्घ्य,
न यूँ ही पाये नाम ‘नाक’ सुवर्ग ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
भाग-कपास, जागा
हाथ क्या गुरु जी लागा,
धागाजयमाला
।। विद्यासागर जय जय ।।
ज्ञान दिवाकर जय जय ।
गुण रत्नाकर जय जय ।।
कल शिव नागर जय जय ।
अविरल जागर जय जय ।।
विद्यासागर जय जय ।।
जय विद्यासागर जय जय ।।१।।सत् कृत आगर जय जय ।
दिव छवि भासुर जय जय ।।
पुरु गुरु आदर जय जय ।
गत मरणा जर जय जय ।।
विद्यासागर जय जय ।।
जय विद्यासागर जय जय ।।२।।दर्पण आचर जय जय ।
दृग करुणा झिर जय जय ।।
पामरताहर जय जय ।
शिव सुखियाकर जय जय ।।
विद्यासागर जय जय ।।
जय विद्यासागर जय जय ।।३।।मन्दर पाथर जय जय ।
जन हित आखर जय जय ।।
मनहर माहिर जय जय ।
जश जग जाहिर जय जय ।।
विद्यासागर जय जय ।
जय विद्यासागर जय जय ।।४।।।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
गुरुदेव
खो पाऊँ कुटेव ।
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