परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 319=हाईकू=
तारे,
नभ पा गये, ढेर सारे,
मैं भी खड़ा द्वारे ।।स्थापना।।चढ़ाऊॅं जल,
‘कि कल फिर आना, ए महामना ! ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन,
इस ओर लाना ‘कि चरण पुनः ।।चन्दनं।।भेंटूँ धाँ शाली,
‘कि मनाऊँ दीवाली यूँ ही रोजाना ।।अक्षतं।।भेंटूँ कुसुम,
‘कि आ जाया करो यूँ ही रोज तुम ।।पुष्पं।।लगाऊँ भोग,
कि कल फिर जुड़े यूँ ही संयोग ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीवाली,
पावन कीजे कल फिर ये गली ।।दीपं।।भेंटूँ धूप,
न जाना दूर कि लगी पड़ने धूप ।।धूपं।।भेंटूँ फल,
‘कि नवधा भक्ति, मिले फिर से कल ।।फलं।।भेंटूँ अरघ,
न करना खुद से मुझे अलग ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
पाँव छूते ही आपके,
पाँव ढ़ीले हुये पाप केजयमाला
सुत श्रि-मत जय जय जय ।
यति जगत जय जय जय ।।
श्रुत सुरत जय जय जय ।
व्रति महत् जय जय जय ।।१।।दृग् सजल जय जय जय ।
जग कमल जय जय जय ।।
रग अमल जय जय जय ।
डग अचल जय जय जय ।।२।।शिख सुनत जय जय जय ।
दुख हरत जय जय जय ।।
हरि विरत जय जय जय ।
कलि भरत जय जय जय ।।३।।सत् सु-मन जय जय जय ।
पत श्रमण जय जय जय ।।
रम वचन जय जय जय ।
तम किरण जय जय जय ।।४।।दिव मुकत जय जय जय ।
मत सुमत जय जय जय ।।
थिर विरद जय जय जय ।
जय जयत जय जय जय ।।५।।॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
=हाईकू=
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ,
गुरुदेव
खो पाऊँ फरेब ।
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