- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 316
==हाईकू==
माँ श्री मन्ती के लाल,
गिर न जाऊँ मैं, लो संभाल ।।स्थापना।।
पाने आपकी करुणा,
लाये जल,
आये शरणा ।।जलं।।
पाने आपकी-शरणा
लाये गंध,
आये शरणा ।।चन्दनं।।
पाने आप सा सपना,
लाये सुधां,
आये शरणा ।।अक्षतं।।
पाने आप से नयना,
लाये पुष्प,
आये शरणा ।।पुष्पं।।
पाने आप सी रसना,
लाये चरु,
आये शरणा ।।नैवेद्यं।।
पाने आप से वयना,
लाये दीप,
आये शरणा ।।दीपं।।
पाने आप से करणा,
लाये धूप,
आये शरणा ।।धूपं।।
पाने आप आचरणा,
लाये फल,
आये शरणा ।।फलं।।
पाने आपकी तरणा,
लाये अर्घ,
आये शरणा ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
है आप ज्ञान समन्दर,
बाहर एक अन्दर
जयमाला
आ-दरश दिखा दो
दृग् तरश गये दो ॥
मीरा प्रभु पाई ।
शबरी रघुराई ॥
दृग् दूर, कण्ठ भी,
रह-रह भर आई ।
आ दरश दिखा दो,
दृग् तरश गये दो ॥
चन्दन जिन-पाई ।
गौतम जिन-राई ॥
दृग् दूर कण्ठ भी,
रह-रह भर आई ।
आ दरश दिखा दो,
दृग् तरश गये दो ।।
पंकज रवि पाई ।
कागज कवि स्याही ।।
दृग् दूर कण्ठ भी,
रह-रह भर आई।
आ दरश दिखा दो,
दृग् तरश गये दो ।।
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
==हाईकू==
शरद पूनो चंदा !
माफी दो, भूलों का मैं पुलिन्दा
Sharing is caring!