- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 314
हाईकू
पिता मल्लप्पा दृग् तारे,
मेंटो दुक्ख दरद सारे ।।स्थापना।।
अजनबी ये अपना लिया,
आया मैं तर नैना ।।जलं।।
अपनाया जो तुमने हमें,
भेजूँ चन्दन तुम्हें ।।चन्दनं।।
अपना के जो तुमनें राखी पत,
भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।
भेंटूँ कुसुम मैं,
है अपनाया जो मुझे तुमनें ।।पुष्पं।।
तुमनें मुझे जो अपनाया,
चरु भेंटने लाया ।।नैवेद्यं।।
तुमनें मुझे ये जो अपना लिया,
मैं भेंटूँ ‘दिया’ ।।दीपं।।
अपना मुझे कृपा तुमने जो की,
भेंटूँ सुगन्धी ।।धूपं।।
अपनाया जो तुमनें ये दृग् जल,
भेंटूँ श्रीफल ।।फलं।।
अपनाया जो तुमने मुझे,
पूजूँ तुम्हें अर्घ्य से ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
उधड़े रिश्ते सिल देते,
गुरु से आ मिल लेते
जयमाला
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
रख लीजे गुरु जी पास में ।
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
बन जाइये बस बागवाँ ।
दिखलाऊँगा छू आकाश मैं,
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
रख लीजे गुरु जी पास में ।
न तोडूँगा विश्वास मैं ।।
बन जाईयेगा माँझी बस |
दिखलाऊँगा तर, एक श्वास में,
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
रख लीजे गुरु जी पास में ।
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
बन जाइये कुम्भकार बस ।
‘कि लीलूँगा अग्नि, इक ग्रास में,
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
रख लीजे गुरु जी पास में ।
न तोडूँगा विश्वास मैं ।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
सिवाय आप मुस्कान
कोई और न अरमान
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