परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 312
==हाईकू==
दो छत्रच्छाया
शरण थारी आया
ओ ! ऋषि राया ।।स्थापना।।
कटने पाप से,
ले जल आया श्री द्वारे आपके ।।जलं।।
छूटूँ संताप से,
ले चन्दन आया, द्वारे आपके ।।चन्दनं।।
जुड़ने आप जाप से,
ले धाँ आया द्वारे आपके ।।अक्षतं।।
बनने आप से,
ले पुष्प आया श्री द्वारे आपके ।।पुष्पं।।
क्षुधा विहँसे,
ले नैवेध आया, श्री द्वारे आपके ।।नैवेद्यं।।
बोधि विकसे,
ले प्रदीप आया, श्री द्वारे आपके ।।दीपं।।
छूटूँ कर्म से,
ले दश गंध आया, द्वारे आपके ।।धूपं।।
कृपा बरसे,
ले श्री फल आया, श्री द्वारे आपके ।।फलं।।
जुड़ने आप से,
ले अर्घ्य आया, श्री द्वारे आपके ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
यूँ ही न आये भागा जग,
आप हैं कुछ अलग ।।
*जयमाला*
ले माल दीपिका हाथों में ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।
ले धार मोतिका आखों में ।।
ले माल दीपिका हाथों में ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।
नरक पतन डर चाले वन को ।
वश में रखते अपने मन को ।।
तन को तन-ख्वा दे, न ‘कि वेतन,
याद न करते छोड़े धन को ।।
उर गुरु नाम ज्योति प्रकटाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।
सुन गर्जन घन तरु-तल ठाड़े ।
आन खड़े चौराहे जाड़े ।।
सम्मुख शूर खड़े पर्वत चढ़,
जब लू लपट थपेड़े मारे ।।
सहजो श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।
मल पालट तन शोभ बढ़ावें ।
शिला जान मृग खाज खुजावें ।।
सुख दुख कृत कर्मन उपाध लख,
हेत समाध स्वात्म थिर ध्यावें ।।
धन-धन अपनो जन्म बनाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्यं ।।
==हाईकू==
रूप चाहते न रुपया
चाहते ‘भाँ’ स्वरूप का
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