परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 298
==हाईकू==
जिसे देखते ही,
गम हों गुम
हो वो सिर्फ तुम ।।स्थापना ।।
सगरी,
सोन गगरी भरूँ,
जल अर्पण करूँ ।।जलं।।
गगरी मुख तक भरूँ,
‘चन्दन’
अर्पण करूँ ।।चन्दनं।।
चुन साबुत थाली भरूँ,
‘अक्षत’
अर्पण करूँ ।।अक्षतं।।
‘आन-बागान’ पिटारी भरूँ,
‘पुष्प’
अर्पण करूँ ।।पुष्पं।।
थाली पकवाँ गो-घृत भरूँ,
‘चरु’
अर्पण करूँ ।।नैवेद्यं।।
अठ-पहरी गो घृत भरूँ,
‘दीप’
अर्पण करूँ ।।दीपं।।
लबालब द्यु-रु घट भरूँ,
‘धूप’
अर्पण करूँ ।।धूपं।।
द्यु सुनहरी पिटारी भरूँ,
‘फल’
अर्पण करूँ ।।फलं।।
ढोल मंजीरा संग घूँघरू,
अर्घ अर्पण करूँ ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
समर्थ कौन ?
भौ-जल तिराने,
ज्यों गुरु तराने
।।जयमाला।।
जर्रा भी, न मुस्कान दे रहे हो ।
जरा सा भी, न-ध्यान दे रहो हो ।।
क्या रूठे हो मुझसे
कहो क्या रूठे हो मुझसे
कहो ‘ना’, क्या रूठे हो मुझसे
गुरुजी ! क्या रूठे हो मुझसे ।
कर भी दो क्षमा-भला,
हुई क्या, गलती दो बतला ।।
जर्रा भी, न मुस्कान दे रहे हो ।
जरा सा भी, न-ध्यान दे रहो हो ।।
क्या रूठे हो मुझसे
कहो क्या रूठे हो मुझसे
कहो ‘ना’, क्या रूठे हो मुझसे
गुरुजी ! क्या रूठे हो मुझसे ।
क्षमा दे दो, हैं नादां हम ।
पढ़े-लिखे ना ज्यादा हम ।।
जर्रा भी, न मुस्कान दे रहे हो ।
जरा सा भी, न-ध्यान दे रहो हो ।।
क्या रूठे हो मुझसे
कहो क्या रूठे हो मुझसे
कहो ‘ना’, क्या रूठे हो मुझसे
गुरुजी ! क्या रूठे हो मुझसे ।
बुरे या ‘बूरे’ से नम कम ।
तेरे ही, जैसे भी हैं हम ।।
जर्रा भी, न मुस्कान दे रहे हो ।
जरा सा भी, न-ध्यान दे रहो हो ।।
क्या रूठे हो मुझसे
कहो क्या रूठे हो मुझसे
कहो ‘ना’, क्या रूठे हो मुझसे
गुरुजी ! क्या रूठे हो मुझसे ।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
मनवा मान
है अप्रमाण,
गुरु का गुण गान
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