परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 290
==हाईकू==
छत्रछाँव
पा जाँऊ जो थारी,
जाऊँ तो बारी-बारी ।।स्थापना ।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
आया, रहा रो, साँई ।।जलं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया गंध ओ ! साँई ।।चन्दनं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई।।
लाया धाँ, ध्याँ औ’ साँई ।।अक्षतं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया पुष्प, ‘गो’-साँई ।।पुष्पं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया चरु ‘नौ’-साँई ।।नैवेद्यं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया दीप-लौं साँई ।।दीपं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया धूप-द्यो साँई ।।धूपं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया फल धो, साँई ।।फलं।।
स्वीकारो,
आज भी रोज घाँई
लाया अर्घ, मो-साँई ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
‘यूँ ही नृ-भौ
न जाये रीत
गाते आ
गुरु के गीत’
।। जयमाला।।
थम,
पल-पलक थम,
आ बढ़ाते कदम,
ए मन !
छूवने गुरुजी के चरण
किसलिये किसलिये
किसलिये किसलिये
भ्रमण छूटे जी ।
चरण छूते ही ।।
इसलिये इसलिये
इसलिये इसलिये
थम,
पल-पलक थम,
आ बढ़ाते कदम,
ए मन !
छूवने गुरुजी के चरण
किसलिये किसलिये
किसलिये किसलिये
विघन छू वे जी |
चरण छूते ही ।।
इसलिये इसलिये
इसलिये इसलिये
थम,
पल-पलक थम,
आ बढ़ाते कदम,
ए मन !
छूवने गुरुजी के चरण
किसलिये किसलिये
किसलिये किसलिये
गगन छूते जी ।
चरण छूते ही ।।
इसलिये इसलिये
इसलिये इसलिये
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
अन्तिम यही अरज
पाऊँ रोज पाँवन रज
Sharing is caring!