परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
क्रंमाक पूजन 285
“हाईकू”
हूँ परेशाँ
दो सुलझा-उलझन
मेरे भगवन् ।।स्थापना ।।
ओ ! बदले, ‘कि दुनिया म्हारी,
लिये जल की झारी ।।जलं।।
‘कि उड़ सके, पतंग म्हारी,
लिये चन्दन झारी ।।चन्दनं।।
जड़े तारे, ‘कि चूनर म्हारी,
लिये तण्डुल थाली ।।अक्षतं।।
हो मुनि-सी, ‘कि दृग् अविकारी,
लिये पुष्प पिटारी ।।पुष्पं।।
ओ ! जाये खो, ‘कि खुद क्षुध् म्हारी,
लिये पकवा थाली ।।नैवेद्यं।।
कि हो गिनती, ‘धी-हंस’ म्हारी,
लिये घृत दीपाली ।।दीपं।।
आ पड़े चाँद, ‘कि झोली म्हारी,
लिये धूप निराली ।।धूपं।।
‘कि हो, नगरी द्यु-शिव म्हारी,
लिये श्री फल थाली ।।फलं।।
‘कि अखीर, हो समाधि म्हारी,
लिये हैं द्रव्य सारी ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
गुरुजी !
मैं क्या ?
कहे जहाँ दोई
न आप-सा कोई
।। जयमाला ।।
चरणों में कर लेने दो गुरु जी बसेरा ।
अब तक सपनों में अपना हुआ बस सबेरा ।।
चरणों में कर लेने दो गुरुजी बसेरा ।
सिर्फ खाद पानी से ही झूमते न पौधे ।
झूमें सहारा आ के बागवान जो दे ॥
काफी किरण पहली ही, भले तम घनेरा ।
चरणों में कर लेने दो गुरु जी बसेरा ।
अब तक सपनों में अपना हुआ बस सबेरा ।।
चरणों में कर लेने दो गुरु जी बसेरा ।
भले मोर झम-झमा-झम नाचा करे हैं ।
वगैर आदर्श सिर कर नीचा खड़े हैं ।
दीया तले रह जाता है प्रायः कर अंधेरा ।
चरणों में कर लेने दो गुरु जी बसेरा ।
अब तक सपनों में अपना हुआ बस सबेरा ।।
चरणों में कर लेने दो गुरुजी बसेरा ।
वो माटी घड़ी घड़ी जो बन रही गगरी है ।
कुछ न और शिल्पी की ये जादूगरी है ।
सुनते जान भर देता है, रंगों में चितेरा |
चरणों में कर लेने दो गुरु जी बसेरा ।
अब तक सपनों में अपना हुआ बस सबेरा।।
चरणों में कर लेने दो गुरुजी बसेरा ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==हाईकू==
‘न जाने कैसे रह गईं टूट,
‘जी कीजिये झूठ’
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