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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 284

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 284

==हाईकू==

भूल भूलैय्या
दो लगा पार नैय्या
मेरे खिवैय्या ।।स्थापना।।

करुणा कीजो,
आये, उदक लाये
अपना लीजो ।।जलं।।

करुणा कीजो,
आये, चन्दन लाये
तनना छीजो ।।चन्दनं ।।

करुणा कीजो,
आये, धाँ लाये,
काम अगना छीजो ।।अक्षतं।।

करुणा कीजो,
आये, सुमन लाये
श्रमणा कीजो ।।पुष्पं।।

करुणा कीजो,
आये, व्यञ्जन लाये,
भखना छीजो ।।नैवेद्यं।।

करुणा कीजो
आये दीपक लाये
डिगना छीजो ।।दीपं।।

करुणा कीजो,
आये, सुगंध लाये
भ्रमना छीजो ।।धूपं।।

करुणा कीजो,
आये, श्रीफल लाये
मरणा छीजो ।।फलं।।

करुणा कीजो,
आये, अरघ लाये
शरणा लीजो ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==

झोली आ पड़े सब,
आपसे पड़े माँगना कब ॥

जयमाला

चौदवीं ए चाँद टुकड़ा ।
है जादू वाला मुखड़ा ।।
दूर से ही देखा, ये क्या,
दिखा दूर जाता दुखड़ा ।

खूब खूबसूरत-चरणा ।
है मंगल मूरत-चरणा ।।
छूते ही सुलझी उलझन,
समाँ शुभ मुहूरत चरणा ।।
खूब खूबसूरत-चरणा ।
चौदवीं ए चाँद टुकड़ा ।
है जादू वाला मुखड़ा ।।
दूर से ही देखा, ये क्या,
दिखा दूर जाता दुखड़ा ।

हाथों में भी है जादू ।
आँखों में भी है जादू ।।
मैं ना कह रह जमाना,
बातों में भी है जादू।।
हाथों में भी है जादू ।
चौदवीं ए चाँद टुकड़ा ।
है जादू वाला मुखड़ा ।।
दूर से ही देखा, ये क्या,
दिखा दूर जाता दुखड़ा ।

जादू आशीषी छाया ।
जादू नूरानी काया ।।
आने तुम आभरणों में,
दौड़ा चरणों में आया ।
जादू आशीषी छाया ।
चौदवीं ए चाँद टुकड़ा ।
है जादू वाला मुखड़ा ।।
दूर से ही देखा, ये क्या,
दिखा दूर जाता दुखड़ा ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==हाईकू==

जायें खो खामी,
छुपा ही क्या आपसे,
ओ ! अन्तर्यामी ॥

 

 

 

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