परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 281
==हाईकू==
आईजो गुरु जी !
आह्वानन
सूना हृदयाँगन ।।स्थापना।।
तुम्हें पढ़ना जो आँखें मेरी आईं,
धारें भिंटाईं ।।जलं।।
पढ़ना आया अच्छे से आँखें तुम्हें,
भेंटूँ गंध तुम्हें ।।चन्दनं।।
तुम्हें पढ़ना जो आईं आँखें मेरीं,
भेंटूँ धाँ ढेरीं ।।अक्षतं।।
आँखें जो खूब पढ़ लेते हो तुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।
तुम्हें आया जो पढ़ना दृग् सहज,
भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।
पढ़ लिया जो तुमने ‘अख’ लिखा,
भेंटूँ दीपिका ।।दीपं।।
तुमने आँखें जो हमारीं पढ़ लीं,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
भेंटूँ श्री फल,
दृग् पढ़ना जो तुम्हें बड़ा सरल ।।फलं।।
अरघ भेंटूँ,
पुण्य आप सेवा ‘कि फिर समेटूँ ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
चाँद सरीखे हैं,
ना… ना…
आप चाँद से भी नीके हैं
…जयमाला…
।। श्री मन्त नन्दना ।।
गत द्वन्द वन्दना ।
निर्ग्रन्थ वन्दना ।।
नित नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।१।।
शिव स्यंद वन्दना ।
निस्पन्द वन्दना ।।
नित नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।२।।
पुन नन्त वन्दना ।
गुणवन्त वन्दना ।।
नित नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।३।।
सिध मन्त्र वन्दना ।
रिध सन्त वन्दना ।।
नित नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।४।।
दय पन्थ वन्दना ।
चल ग्रन्थ वन्दना ।
नित नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।५।।
॥ जयमाला पूर्णार्घ्यं ॥
==हाईकू==
वीनती,
कर स्वयं-जैसा लो,
सुत माँ सरस्वती ।
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