परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 280
हाईकू
आ हृदय में पधारो
‘आमंत्रण’
मेरा स्वीकारो ।।स्थापना।।
भेंटूँ नीर,
दो तीर से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।जलं।।
भेंटूँ गन्ध,
दो नन्त से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।चन्दनं।।
भेंटूँ सुधाँ,
दो सुध्याँ से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।अक्षतं।।
भेंटूँ फूल,
दो कूल से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चरु,
दो प्रभु से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ ज्योत,
दो पोत से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।दीपं।।
भेंटूँ धूप,
दो डूब से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।धूपं।।
भेंटूँ फल,
दो हल से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।फलं।।
भेंटूँ अर्घ,
दो स्वर्ग से जोड़ नाता,
मेरे विधाता ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
‘वाह’ गजब !
था नया-नया,
‘दिया’ दे दिया सब’
जयमाला
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
सुनो, तुम मोती चुगना,
भव मानस पाकर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
उड़ाने काग खातिर तुम,
मण मनुज, कर ना देना गुम ।
चढ़ाना भगवन् चरणन, हित सु-मरण जाकर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
राख खातिर मेरे नन्दन,
खाक न करना भव-चन्दन,
चर्चना भगवन् चरणन, हित सु-मरण आकर ।।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
पालने झूलें विद्याधर ।
सुलाये माँ लोरी गाकर ।।
तुम शुद्ध हो ।
तुम बुद्ध हो ।
मत-हंस तुम, कल सिद्ध हो ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
‘दास अर्दास,
ओ ! रख लो नजरों के, आस-पास’
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