परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 278
==हाईकू==
सुनते,
आप सुनते दुखड़ा,
सो सम्मुख खड़ा ।।स्थापना।।
भेंट ले आये,
‘जल-घट’
विघटा दीजे संकट ।।जलं।।
भेंट ले आये,
‘गन्ध-घट’
विघटा दीजे कण्टक ।।चन्दनं।।
भेंट ले आये,
‘शाली धान’
‘जि भिंटा दीजे संज्ञान ।।अक्षतं।।
भेंट ले आये,
‘पुष्प चुन’
विघटा दीजे ‘औ गुण’ ।।पुष्पं।।
भेंट ले आये,
‘पकवान ‘
विघटा दीजे धिक् ध्यान ।।नैवेद्यं।।
भेंट ले आये,
‘दीप घृत’
‘जि भिंटा दीजे अमृत ।।दीपं।।
भेंट ले आये,
‘धूप-घट’
विघटा दीजे धिक् हट।।धूपं।।
भेंट ले आये,
‘ऋतु-फल’
‘जि भिंटा दीजे संबल।।फलं।।
भेंट ले आये,
‘द्रव सब’
विघटा दीजे गरब ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
‘तुम्हें,
करना रिश्तों की तुरपाई
खूब आई’
जयमाला
।। विद्या सागर सूर ।।
सन्त सन्त आदर्श ।
दर्श पाप अपकर्ष ।।
मंशा सहज प्रपूर |
विद्या सागर सूर ।।
दूर मेघ बद झाँप ।
सुदूर मद मृग-हाँप ।।
आतप प्रमाद दूर ।
विद्या सागर सूर ।।
राहु-मुख न खग्रास ।
अर्पित परहित, श्वास ।।
अखर-निराकुल नूर ।
विद्या सागर सूर ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
‘निवसिये आ श्वास-श्वास,
और न अभिलाष’
Sharing is caring!