परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 276
==हाईकू==
सुना,
गुरु जी, सुना करते सभी की,
दुखी मैं भी ।। स्थापना।।
पाऊँ अखीर,
‘सु-मरण’
चढ़ाऊँ नीर भगवन् ।। जलं।।
पाऊँ शरण,
चढ़ाऊँ चन्दन,
न गवाऊँ क्षण ।। चन्दनं।।
पा जाऊँ पद,
‘अक्षत’ चढ़ाऊँ,
‘कि गवाऊँ मद ।। अक्षतं।।
पाऊँ भौ-कूल,
मैं चढ़ाऊँ फूल’
‘कि गवाऊँ भूल ।। पुष्पं।।
पाऊँ ‘निर्वाण’,
चढ़ाऊँ पकवान,
गुमा, गुमान ।। नैवेद्यं।।
पाऊँ ‘दीवाली’
चढ़ाऊँ ‘कि गवाऊँ,
खुरपा जाली ।। दीपं।।
चढ़ाऊँ धूप
जड़ रुपये रूप’
पाऊँ चिद्रूप ।। धूपं।।
पा जाऊँ ‘बल’
चढ़ाऊँ श्रीफल,
कि गवाऊँ छल ।। फलं।।
पा जाऊँ मग,
चढ़ाऊँ अरघ,
‘कि गवाऊँ अघ ।। अर्घ्यं।।
==हाईकू==
सभी चाहते आपका होना
ये है क्या ?
जादू-टोना ।।
…जयमाला…
सुन-सुन-सुन,
ए पवन सुन !
क्या जायेगी वहाँ रे !
जहाँ गुरु जी हमारे ।
सुन-सुन-सुन,
ए पवन सुन !
तो रुक जरा !
आ पास आ !
ये सन्देशा ।
मेरा ले जा ।।
‘कि जा गुरु जी से कहना ।
वन्दना डब-डब नयना ।।
ढोंक ना देना कोरी ।
उड़ाना थोड़ी थोड़ी ।।
क्या ? वही भेंट गुल की ।
सुगन्धी-हल्की-हल्की ।।
और करुणा के झरना ।
हाँ-हाँ गुरुदेव चरणा ।।
तराने गुन-गुनाते ।
भ्रमर जिन पे मडराते ।।
पद्म ही मानों दूजे ।
तिन्हें आ-जाना छू के ।।
‘री पवन सुन ‘री ओ‘री ।
बस न आ जाना दौड़ी ।।
वही थम जाना सुख से ।
अमृत पाना गुरु मुख से ।।
क्या कहा सुनते जाना ।
आ यहाँ मुझे सुनाना ।।
और फिर आते-जाते ।
‘कि आना शीश नवाते ।।
चरण छू फिर से लेना ।
सलामी फरसी देना ।।
बात दो बना हमारी ।
जाऊँ तो मैं बारी-बारी।।
जाऊँ तो मैं बारी-बारी।।
जाऊँ तो मैं बारी-बारी ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
दो वर,
साँझ से पहले ‘कि जायें पहुँच घर’
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