परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 274
*हाईकू*
रह पाऊँगा,
न आपके बिन
दे दीजे शरण ।।स्थापना ।।
जल चढ़ाते चरण ।
मेंटो जन्म, जरा मरण ।।जलं।।
गन्ध चढ़ाते चरण ।
लगा हाथ दो सुमरण ।। चन्दनं।।
सु-धाँ चढ़ाते चरण ।
अलबिदा ‘कि हों विघन ।।अक्षतं।।
गुल चढ़ाते चरण ।
निराकुल ‘कि होवे मन ।।पुष्पं।।
चरु चढ़ाते चरण,
करूँ ‘क्षमा-तरु’ वरण ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाते चरण,
मिथ्यातम कीजे हनन ।।दीपं।।
धूप चढ़ाते चरण,
‘कि चिद्रूप से हो मिलन ।।धूपं।।
फल चढ़ाते चरण,
हो गहल अपहरण ।।फलं।।
अर्घ चढ़ाते चरण,
हो ऽपवर्ग स्वर्ग गमन ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
तेरा रहमो करम,
छू गये जो आसमाँ हम
।। जयमाला ।।
दुनिया से तोड़ी प्रीत जोड़ी आपसे ।
विनती यही जोड़ी-हाथ थोड़ी आपसे ।।
छोड़ किसी मोड़ पे न चल देना मुझे ।
जोड़ किसी और से न चल देना मुझे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।
दुनिया से तोड़ी प्रीति जोड़ी आप से |।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।।
अपनी नजरों से न गिरा देना मुझे ।
अपने अधरों से न ‘हिरा’ देना मुझे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।
दुनिया से तोड़ी प्रीत जोड़ी आपसे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।।
अपने गैरों में न बिठा लेना मुझे ।
अपने पैरों से न उठा देना मुझे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।
दुनिया से तोड़ी प्रीत जोड़ी आपसे ।।
विनती यही जोड़ी हाथ थोड़ी आपसे ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
‘ओ ! विद्या-सिन्धु जी सुन,
लो अपने शिष्यों में चुन’
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