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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 273

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 273

==हाईकू==
‘रहे मेरा यूँ ही,
तेरा आशीर्वाद
सिर्फ मुराद’।।स्थापना ।।

अरज सुन, जो दिया गंधोदक
भेंटूँ उदक ।।जलं।।

भेंटूँ चन्दन मैं,
अरज सुनना जो आया तुम्हें ।।चन्दनं।।

अरज सुन ली, तुमनें जो मेरी,
भेंटूँ धाँ ढेरी ।।अक्षतं।।

अरज मेरी सुन जो आये तुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

तुमनें मेरी जो अरज ली सुन,
भेंटूँ व्यञ्जन ।।नैवेद्यं।।

‘दिया’ भेंटने लाया,
तुम्हें अरज सुनना आया ।।दीपं।।

तुमने मेरी जो अरज सुन ली,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।

अरज सुन ली जो मेरी तुमनें,
भेंटूँ भेले मैं ।।फलं।।

तुमने मेरी सुन ली जो अरज,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घं।।

==हाईकू==
मुझ शबरी के राम ।
क्या आपसे छुपा, त्राहि माम् ।।

।। जयमाला।।

‘जी इतनी-सी गुरुवर जी ।
अजी ! बस इतनी-सी अरजी ।।

आ हृदय पधारो गुरु जी ।
चरणों में बिठा लो गुरु जी ।।

‘जी इतनी-सी गुरुवर जी ।
अजी ! बस इतनी-सी अरजी ।।

धिक्-नजर-टाल दो गुरु जी ।
इक-नजर डाल दो गुरु जी ।।

‘जी इतनी-सी गुरुवर जी ।
अजी ! बस इतनी-सी अरजी ।।

थोड़ा मुस्काँ दो गुरु जी ।
रोड़ा खिसका दो गुरु जी |

जी इतनी-सी गुरुवर जी ।
अजी ! बस इतनी-सी अरजी ।।
जय कारा गुरुदेव…
जय जय गुरुदेव…
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

*हाईकू*
कर नजर-अंदाज खामी,
राख-दो लाज स्वामी’

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