परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 267
==हाईकू==
बेजुबाँ जवाँ,
‘जाँ’
हिन्दी जुबाँ
गुरु जी नमो नमः ।।स्थापना ।।
भेंटूँ उदक,
हूबहू आप जैसी, पाने बनक ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन,
हूबहू आप जैसा, जीतने मन ।।चन्दनं।।
भेंटूँ सुधान,
हूबहू आप जैसा, लगाने ध्यान ।।अक्षतं।।
भेंटूँ पहुप,
हूबहू आप जैसा, जीत पाने कुप् ।।पुष्पं।।
भेंटूँ व्यंजन,
हूबहू होने आप-सा, निरंजन ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ घी दिया,
हूबहू आप जैसी, पाने ‘भी’, धिया ।।दीपं।।
भेंटूँ सुगंध,
हूबहू आप जैसा, छकाने बंध ।।धूपं।।
भेंटूँ श्रीफल,
हूबहू आप जैसी, खोने गहल ।।फलं।।
न, ना करना,
अर्घ्य लाये चरणा,
लीजे अपना ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
किसके गले, शिकवे गिले,
‘जि हैं आप विरले ।।
।। जयमाला।।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो
दे चरण-रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो !
बेखबर आतम-स्वातम ।
हर तरफ मातम-मातम ।।
घुटा नेकिंयों का दम ।
घुटता बेटिंयों का दम ।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो
दे चरण-रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो !
हर तरफ मातम-मातम ।
बेखबर आतम-स्वातम ।।
लहरता पश्चिमी परचम ।
बियर तो व्हीस्की कहीं रम ।।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो
दे चरण-रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो !
हर तरफ मातम-मातम ।
बेखबर आतम-स्वातम ।।
आँखें बेजुबाने नम ।
झोली नौजवाने गम ।।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो
दे चरण-रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो !
हर तरफ मातम-मातम ।
बेखबर आतम-स्वातम ।।
होता सा ढिग-शव धरम ।
खोता सा दृग् शिव-शरम ।।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो
दे चरण-रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो !
हर तरफ मातम मातम ।
बेखबर आतम-स्वातम।।
विद्या सिन्धु अहो
सुन अरज लो,
दे चरण रज दो,
विद्या-सिन्धु अहो ।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
भूल तो हुईं हैं,
कर दो माफ,
हो क्षमावान् आप ।।
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