परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 264
“हाईकू”
जगत् साथिया
‘नुति शाने हिन्दुस्ताँ’
‘जगत-दिया’ ।।स्थापना।।
तुमने जीती गहल,
सो अर्पित करूँ दृग् जल ।।जलं।।
तुमने जीता मन,
सो समर्पित करूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
तुमने जीता मद,
सो समर्पित करूँ अक्षत ।।अक्षतं।।
तुमने जीता कुप्,
तभी समर्पित करूँ पहुप ।।पुष्पं।।
तुमने जीती जिद,
समर्पित चरु सो घी निर्मित ।।नैवेद्यं।।
तुमने जीती धी बक,
सो अर्पित करूँ दीपक ।।दीपं।।
तुमने जीता दृग्-द्वन्द्व,
सो अर्पित करूँ सुगंध ।।धूपं।।
तुमने जीता छल,
तभी अर्पित करूँ श्री फल ।।फलं।।
कीजो करुणा,
स्वीकार लीजो अर्घ,
दीजो शरणा ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
‘पास अपने जो बैठने दिया,
श्री गुरु शुक्रिया’
।। जयमाला ।।
पड़गाहन का समय है
आ जाइये ‘ना’ गुरुजी,
मेरे आँगन विनम्र विनय है ।।
पड़गाहन का समय है ।
माना चन्दन सी भक्ति,
मुझसे नहीं है ।
साथ-क्रन्दन अभिव्यक्ति,
मुझमें नहीं है ।।
पर डब डब नयना कम ना,
और गद-गद हृदय है ।
पड़गाहन का समय है ।।
आ जाइये ‘ना’ गुरुजी,
मेरे आँगन विनम्र विनय है ।
पड़गाहन का समय है ।
नवधा-भक्ति माना,
नृप सोम सी न हाथ में ।
श्रद्धा-भक्ति,
राजा श्रेयांस सी न साथ में ।।
पर डब डब नयना कम ना
और गद-गद हृदय है ।।
पड़गाहन का समय है ।
आ जाइये ‘ना’ गुरुजी,
मेरे आँगन विनम्र विनय है ।
पड़गाहन का समय है ।
नाग नकुल कपि जैसा,
पुन सातिशय नहीं ।
माना नृप उद्दायन सा
विरद अक्षय नहीं ।।
पर डब डब नयना कम ना
और गद-गद हृदय है ।।
पड़गाहन का समय है ।
आ जाइये ‘ना’ गुरुजी,
मेरे आँगन विनम्र विनय है ।
पड़गाहन का समय है ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“हाईकू”
‘फेरूँ रबर ‘नो-कार’
हुईं भूलें
सैकड़ों बार ।
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