परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 261
==हाईकू==
ख्यात विरद,
मेंटते आप हाथों-हाथ दरद ।। स्थापना ।।
लाये उदक,
पाने आपकी, सिर्फ एक झलक ।। जलं।।
लाये चन्दन,
करने आप-सा, ‘भी’ अभिनन्दन ।। चन्दनं।।
लाये धाँ शाली,
मन सके आप-सी, मेरी दीवाली ।। अक्षतं।।
लाये सुमन,
पाने वैसा, है आप का जैसा, मन ।।पुष्पं।।
लाये व्यञ्जन,
करने आप-सा, क्षुध्-गद भंजन ।।नैवेद्यं।।
लाये प्रदीव,
आने आपके, और…और करीब ।।दीपं।।
लाये सुगन्ध,
लुभाये आप जैसा, ‘कि चिदानन्द ।।धूपं।।
लाये श्री-फल,
होने आप-सा, पल-पल सफल ।। फलं।।
लाये अरघ,
विध्वंसने आप से ही, सारे अघ।। अर्घ्यं।।
==हाईकू==
‘विधाता !
तुम्हें हारना अपनों से, बखूबी आता’
।। जयमाला।।
आपका साथ
जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ।।
हाथ हथेली ऊपर |
थमी, एड़ियाँ न भूपर ॥
फिर भी ये क्या ?
आसमाँ हाथ ना आये ।
आप की गोद,
जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ।।
आपका साथ, जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ।
न सिर्फ काई गुरुजी ।
बहुत गहराई गुरु जी ।।
और ये क्या ?
तट दूरबीन भी आँख न आये ।।
आप की पोत,
जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ।
आपका साथ, जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ।।
चाँद न आज आना ।
मुझे पर देश-जाना ।।
और ये क्या ?
ऐनक भी साथ न लाये ।
आप संजोत,
जो हाथ लग जाये,
तो बात बन जाये ॥
आपका साथ जो हाथ लग जाये ।
तो बात बन जाये ॥
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
‘क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
श्री गुरुदेव,
आपकी सेव’
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