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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 253

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 253

“हाईकू”

तेरा रहमो-करम,
जो छू गये आशमाँ हम !  स्थापना।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते जल,
छिद्र-छल दो गुमा ! जलं ।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते चन्दन,
दो क्रन्दन गुमा ! चन्दनं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते शालि-धाँ,
दो कालिमा गुमा ! अक्षतं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते पुष्प,
दो भाव कुप् गुमा ! पुष्पं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते नेवज,
दो क्षुध् रुज गुमा ! नैवेद्यं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते दीपक,
दो ‘धी’ बक गुमा ! दीपकं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते धूप,
छाँव-धूप दो गुमा ! धूपं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते श्रीफल,
दो गहल गुमा ! फलं।।

वीर वर्तमाँ !
भेंटते द्रव्य सर्व,
दो गर्व गुमा ! अर्घ्यं।।

=हाईकू=

था भू-भार,
जो लिया स्वीकार,
जाऊँ मैं बलिहार ।

‘जयमाला’
शरण में आप, जो आ जाता है ।
कम नहीं खूब, वो पा जाता है ।।

खूब मुस्कान यहाँ मिलती है ।
दूब गुमाँ न यहाँ खिलती है ।।
शरण में आप, जो आ जाता है ।
कम नहीं खूब, वो पा जाता है ।।

खूब आशीष छाँव मिलती है ।
धूप ताव तनाव न खलती है ।।
शरण में आप, जो आ जाता है ।
कम नहीं खूब, वो पा जाता है ।।

चरणों की धूल खूब मिलती है ।
जन्मों की भूल, डूब गलती है ।।
शरण में आप, जो आ जाता है ।
कम नहीं खूब, वो पा जाता है ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

“हाईकू”

अपराध,
न एकाध,
ओ ! हो गये काफी
दो माफी ।

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