परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 252
“हाईकू”
पढ़ आईजो खेवटिया,
भँवर लिक्खूँ चिठिया ।।स्थापना।।
श्रमण राया !
नीर घट लाया,
दृग सजल आया ।। जलं।।
श्रमण राया !
गन्ध घट लाया,
दो आशीषी छाया ।। चन्दनं।।
श्रमण राया !
धाँ अछत लाया,
हो हिरण दायाँ ।। अक्षतं।।
श्रमण राया !
पुष्प सित लाया,
दो खो माया-जाया ।। पुष्पं।।
श्रमण राया !
चरु घृत लाया,
दो विघट माया ।। नैवेद्यं।।
श्रमण राया !
दीप घृत लाया,
दो ‘औगम काया’ ।। दीपं।।
श्रमण राया !
धूप घट लाया,
दो वसु ‘माँ-धाया’ ।। धूपं।।
श्रमण राया !
फल- ऋतु लाया,
दो सुख ‘भी’ गाया ।। फलं ।।
श्रमण राया !
द्रव लाया
हित ‘बो’धी सिर नाया ।। अर्घ्यं।।
=हाईकू=
अहसाँ तेरा बड़ा,
खो-खोट, कर जो दिया घड़ा ।
=जयमाला=
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दे दीजिये ॥
जरा शरण में ले लीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
सिर पे रख हाथ बस दीजिये ।
अपने रख साथ बस लीजिये ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दे दीजिये ॥
जरा शरण में ले लीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
बस तनाव-ताव मेंट दीजिये ॥
सिर्फ पाँव-छाँव भेंट कीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दे दीजिये ॥
जरा शरण में ले लीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
बस निगाह देख एक लीजिये ॥
सिर्फ राह भेंट नेक कीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दीजिये ॥
जरा शरण में ले लीजिये।
और कुछ चाहिये न हमे ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
घोल अमृत बोल दे दीजिये ॥
सुमरण अनमोल दे दीजिये ।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
और कुछ चाहिये न हमें ।
जगह चरण में दे दीजिये ॥
जरा शरण में ले लीजिये।
और कुछ चाहिये न हमें ॥
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
=हाईकू=
हो गईं भूलें नेक बार,
दे माफी दो एक बार ॥
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