परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 249
मँझधार में,
‘कि करो-कुछ, लागूँ उस पार मैं ।। स्थापना ।।
ले कर धार-दृग्, आये द्वार,
जल कीजे स्वीकार ।। जलं।।
नम नयन आये द्वार,
चन्दन कीजे स्वीकार ।। चंदनं ।।
हृदय गद-गद आये द्वार,
धाँ कीजे स्वीकार ।। अक्षतम् ।।
प्रफुल्ल मन आये द्वार,
सुमन कीजे स्वीकार ।। पुष्पं ।।
रख विश्वास आये द्वार,
व्यञ्जन कीजे स्वीकार ।। नैवेद्यं ।।
ले-करताल आये द्वार,
दीपक कीजे स्वीकार ।। दीपं ।।
तोतले स्वर ले आये द्वार,
धूप कीजे स्वीकार ।। धूपं ।।
बना हाथों का ‘श्रीफल’ आये द्वार,
कीजे स्वीकार ।। फलं ।।
साथ रोमाञ्च आये द्वार,
अरघ कीजे स्वीकार ।। अर्घं ।।
==हाईकू==
जाने जमाना,
तुम्हें न आता, किसी को ठुकराना ।।
।। जयमाला ।।
एक प्रार्थना,
गुरु जी सिर्फ एक प्रार्थना ।
खींच लेना दिया हाथ ना
पग धरा-धरा रोते ।
दिन गया काग धोते ।।
सोते रात खो गई, अन्त यूँ उड़े तोते I
और ये,एक भव की बात ना ।
एक प्रार्थना,
गुरु जी ! सिर्फ एक प्रार्थना ।
नादाँ तब न ज्ञान था ।
हुआ जबाँ गुमान था ।।
आया यूँ बुढ़ापा, यम खड़ा अब आन था ।।
और ये,एक भव की बात ना ।
एक प्रार्थना,
गुरु जी ! सिर्फ एक प्रार्थना ।
खींच लेना दिया हाथ ना
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==हाईकू==
कृपया भूलें दो भुला-अखिल,
ए ! रहम-दिल ।।
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