परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 244
खूबसूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।।
तुम हाँ !
हाँ ! हाँ ! तुम ।
भगवत् मूरत हो ।। स्थापना ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
ओ ! तारण-तरणा ।
स्वीकारो जल-घट ।
लिये खड़े चरणा ।। जलं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
इक शरण्य-शरणा ।।
स्वीकारो चन्दन ।
लिये खड़े चरणा ।। चंदनं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
हर-जामन-मरणा ।।
स्वीकारो अक्षत ।
लिये खड़े चरणा ।। अक्षतम् ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
सुधा-सिन्धु करुणा ।।
स्वीकारो फुलवा ।
लिये खड़े चरणा ।। पुष्पं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
लोभ-क्षोभ-हरणा ।।
स्वीकारो पकवाँ ।
लिये खड़े चरणा ।। नैवेद्यं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
अनुकम्पा झरना ।।
स्वीकारो दीवा ।
लिये खड़े चरणा ।। दीपं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
द्वन्द्व-बन्ध क्षरणा ।।
स्वीकारो सुगन्ध ।
लिये खड़े चरणा ।। धूपं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
हरणा भव-भ्रमणा ।।
स्वीकारो ऋतु फल ।
लिये खड़े चरणा ।। फलं ।।
गुरु ज्ञाना-भरणा ।
अवहित पन-करणा ।।
स्वीकारो द्रव-सब ।
लिये खड़े चरणा ।। अर्घं।।
**दोहा**
छूवे गुरु गुण गान से,
ठण्डक सी इक चित्त ।
चित्त लगा के आ करें,
गुरु गुण कीर्तन मित्र ।।
।। जयमाला ।।
इक आरजू !
दे जरा, मुस्कुरा, इक बार तू ।
कभी तो आ के मुझसे, कह दे जरा ।
मैं हूँ तेरा सिर्फ, तू हैं मेरा ।।
इक आरजू !
दे जरा, मुस्कुरा, इक बार तू ।
कभी तो आ के मुझसे, कह दे जरा ।
खोल अँखिंयाँ, मैं तेरे सामने खड़ा ।।
इक आरजू !
दे जरा, मुस्कुरा, इक बार तू ।
कभी तो आ के मुझसे, कह दे जरा ।
अब न जाऊँगा, दिया हाथ छुड़ा ।।
इक आरजू !
दे जरा, मुस्कुरा, इक बार तू ।
…जयमाला पूर्णार्घं…
**दोहा**
भूलें कैसे हो गईं,
लगी भनक ना एक ।
दे दीजे माफी खड़े,
हाथ जोड़ सिर-टेक ।।
Sharing is caring!