परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 240
मिसरी तुम घोलते हो ।
जुबां जब खोलते हो ।।
कला ये दो सिखला भी ।
साथिया वधु-शिव भावी ।। स्थापना ।।
पा नजर जो जाता है ।
हाँ ! निखर वो जाता है ।।
नीर ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। जलं ।।
धूल पा जाये चरणन ।
कूल आ जाये तत्-क्षण ।।
गन्ध ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। चंदनं ।।
झलक इक जो भी पाता ।
झलक स्वातम ही आता ।।
अछत ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। अक्षतम् ।।
आय ले झोली खाली ।
झूमता जाये सवाली ।।
पुष्प ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। पुष्पं ।।
यहाँ की न सिर्फ बातें ।
होती पूरी मुरादें ।।
लिये चरु आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। नैवेद्यं ।।
याद कर ले बस मन से ।
सुलझ जाये उलझन से ।।
दीप ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। दीपं ।।
करें भक्ती, दे तालीं ।
अँगुलियां घी में सारीं ।।
धूप ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। धूपं ।।
समर्पण क्या दिखलाया ।
हुई छू-मन्तर माया ।।
लिये फल आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। फलं ।।
द्वार जो भी आया है ।
फाड़ छप्पर पाया है ।।
अरघ ले आया द्वारे ।
सुलट दो भाग सितारे ।। अर्घं।।
==दोहा==
आती गुरु गुण गान से,
जीवन में सुर-ताल ।
मन ! पल भर को ही सही,
आ गाते जय-माल ।।
।। जयमाला ।।
सिर्फ तुम ।
सिर्फ तुम ।
उजाले इक सिर्फ तुम ।।
न नाम को भी गुम, अंधेरा-परचम ।।
घूस-खोरी, काला बाजारी ।
नौ-जवाँ रु बेरोजगारी ।।
हा ! किये नाक में दम ।
न नाम को भी गुम, अंधेरा-परचम ।।
सिर्फ तुम ।
सिर्फ तुम ।
उजाले इक सिर्फ तुम ।
अण्डे पाँत शाकाहारी ।
बे-जुबां रु ये अत्त भारी ।।
‘कि रात-दिन आँख नम ।
न नाम को भी गुम, अंधेरा-परचम ।
सिर्फ तुम ।
सिर्फ तुम ।
उजाले इक सिर्फ तुम ।
लगाये नागिन-चेहरा नारी ।
हो जाये ‘कि ये फरमाँ जारी ।।
‘रे ठहर, हुई हद सितम,
न नाम को भी गुम, अंधेरा-परचम। ।
सिर्फ तुम ।
सिर्फ तुम ।
उजाले इक सिर्फ तुम ।।
…जयमाला पूर्णार्घं…
==दोहा==
नहिं इकाध गुरुदेव जी,
हुईं सैकड़ों भूल ।
कृपया-कर कर दीजिये,
इक-इक को निर्मूल ।।
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