परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 239
मन मेरे वचन तन ।
मेरे जीवन धन ।।
हो क्या-क्या नहीं तुम ।
तुम्हीं मेरे भगवन् ।। स्थापना।।
कलश नीर लाये ।
गहल कीर छाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि चल तीर आये ।। जलं ।।
कलश गन्ध लाये ।
पन स्वछन्द भाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि बन्धन पलाये ।। चंदनं ।।
धाँ-शालि लाये ।
भा-काली भाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि दिवाली आये ।। अक्षतम् ।।
सुमन चुन सजाये ।
मदन अत्त ढ़ाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि अड़चन बिलाये ।। पुष्पं ।।
घृत पकवाँ लाये ।
जिद धिक् ध्याँ भाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि गद-क्षुध बिलाये ।। नैवेद्यं।।
घृत प्रदीप लाये ।
मद समीप आये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि गफलत बिलाये ।। दीपं ।।
घट सुगंध लाये ।
निकट बंध आये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि क्रन्दन बिलाये ।। धूपं ।।
सु-मधुर फल लाये ।
फिकर कल सताये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि गहल गल जाये ।। फलं ।।
अरघ थाल लाये ।
उरग चाल भाये ।।
कर कुछ दो ऐसा ।
‘कि उड़ स्वर्ग आये ।। अर्घं।।
==दोहा==
एक अलग ही दे सुकूँ,
सुनते गुरु गुण गान ।
चल, पल-भर को ही सही,
चुनते गुरु गुण गान ।।
।। जयमाला ।।
तेरे चहरे से, ये जो टकपता नूर है ।
तू हो न हो, कोई फरिश्ता जरूर है ।
‘कि जब तू मुस्कुराता है ।
फूल भी देख शर्माता है ।।
हो न हो कोई, राज इसमें जरूर है ।
तेरे चेहरे से, ये जो टपकता नूर है ।।
तू हो न हो, कोई फरिश्ता जरूर है ।
‘कि नजरों को ज्यों उठाता है ।
अमनो-चैन बरष जाता है ।।
हो न हो कोई, राज इसमें जरूर है ।
तेरे चेहरे से, ये जो टपकता नूर है ।
तू हो न हो, कोई फरिश्ता जरूर है ।।
‘कि होंठ ज्यों हि थिरकाता है ।
अमृत मानों झलकाता है ।।
हो न हो कोई, राज इसमें जरूर है ।
तेरे चहरे से, ये जो टपकता नूर है ।
तू हो न हो, कोई फरिश्ता जरूर है ।।
…जयमाला पूर्णार्घं…
==दोहा==
करते ‘फी’ की बात ना,
करें न फीकी बात ।
गुरु वे चरणों में रहे,
उनके मेरा माथ ।।
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