परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 236
घन घोर अंधेरे ।
तुम ही इक मेरे ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। स्थापना ।।
संसार अनोखा ।
दें अपने धोखा ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। जलं ।।
संसार अनूठा ।
सगा ‘साया’ झूठा ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। चंदनं ।।
संसार अजूबा ।
स्वारथ में डूबा ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। अक्षतम् ।।
संसार निराला ।
मकड़ी का जाला ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। पुष्पं ।।
संसार अजब है ।
साधे मतलब है ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। नैवेद्यं ।।
संसार अलग है ।
विषमय रग-रग है ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। दीपं ।।
संसार निरा-ही ।
हा ! रसिक तबाही ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। धूपं ।।
संसार जुदा-सा ।
प्रपञ्ची तराशा ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। फलं ।।
संसार नियारा ।
सागर सा खारा ।।
भर सपने रँग दो ।
कर अपने सँग लो ।। अर्घं।।
==दोहा==
भूले-भटके ही चलो,
छू आये गुरु द्वार ।
सुनते दर-गुरु क्या छुआ,
होता बेड़ा पार ।।
॥ जयमाला ।।
जयकारा गुरुदेव का,
जय-जय गुरुदेव ।
जयकारा गुरुदेव का,
जय-जय गुरुदेव ।
प्रीत पुरानी तुम से है गुरुवर मेरी ।
जुड़ी कहानी तुम से है गुरुवर मेरी ।।
तुम ही हो वो,
जो सपनों में आते हो ।
तुम ही हो वो,
जो अपनों में आते हो ।।
प्रीत पुरानी तुम से है गुरुवर मेरी ।
जुड़ी कहानी तुम से है गुरुवर मेरी ।।
तुम ही हो वो,
जो कण-कण से न्यारे हो ।
तुम ही हो वो,
जो धड़कन से प्यारे हो ।।
प्रीत पुरानी तुम से है गुरुवर मेरी ।
जुड़ी कहानी तुम से है गुरुवर मेरी ।।
तुम ही हो वो,
जो सर…गम धर लेते हो ।
तुम ही हो वो,
जो सरगम भर देते हो ।।
प्रीत पुरानी तुम से है गुरुवर मेरी ।
जुड़ी कहानी तुम से है गुरुवर मेरी ।।
तुम ही हो वो,
जो दुख दरद समझते हो ।
तुम ही हो वो,
जो सुख-सरहद धरते हो ।।
प्रीत पुरानी तुम से है गुरुवर मेरी ।
जुड़ी कहानी तुम से है गुरुवर ।।
मेरी जयकारा गुरुदेव का,
जय-जय गुरुदेव ।
जयमाला पूर्णार्घं
==दोहा==
इस बारी भी हो गईं,
भूलें भाँति सदैव ।
माफी-नामा कर कृपा,
कर कीजे गुरुदेव ।।
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