परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 232
हैं आकुल-व्याकुल हम ।
हो शान्त निराकुल तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। स्थापना ।।
हैं गफलत मूरत हम ।
हो भले मुहूरत तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। जलं ।।
हैं संध्या लाली हम ।
हो समाँ दिवाली तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। चंदनं ।।
हैं उड़ते भू रज हम ।
हो उगते सूरज तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। अक्षतम् ।।
हैं अमा चन्द्रमा हम ।
हो समाँ चन्द्रमा तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। पुष्पं ।।
अभिमान हिमालय हम ।
संज्ञान क्षमालय तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। नैवेद्यं ।।
घर मायाचारी हम ।
करुणा अवतारी तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। दीपं ।।
मञ्जूषा-नेही-हम ।
प्रत्यूषा-नेही तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।।धूपं ।।
है राग पिटारे हम ।
हो भाग सितारे तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। फलं ।।
बेताबी-सागर हम ।
शिव-भावी-नागर तुम ।।
प्यारा सपने जैसा ।
कर लो अपने जैसा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
नजर उठा गुरु ने जिसे,
देख लिया इक बार ।
हुआ सुनिश्चित मानिये,
उसका बेड़ा पार ।।
।। जयमाला ।।
छू चले आसमाँ हम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
अब मेरी चाँदी चाँदी है ।
मिली पञ्छी आजादी है ।।
हो चला खातमा गम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
छूल चले आसमाँ हम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
किनारे मुझसे हुई फिकर ।
आप जो रखने लगे खबर ।।
खो चला आज मातम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
छूल चले आसमाँ हम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
आपने क्या देखा मुझको ।
पाप ने ना देखा मुझको ।।
खो चला, आतमा-तम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
छू चलें आसमाँ हम ।
बने क्या बागवाँ तुम ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
हुईं गल्तियाँ खूब हैं,
ठहरा बाल-गुपाल ।
कृपया कर दीजे क्षमा,
ऐ ! इक हृदय विशाल ।।
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